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बिगड़ते पर्यावरण का प्रमुख कारण द्रुतगति से बढ़ती जनसंख्या है, जिसकी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पा रही है । इसके लिए आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी का अत्यधिक इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है । मानव हित मे शुद्ध पर्यावरण के लिए हमे 'इकोनामी' एवं इकोलाजी को संतुलित करना होगा । इन कठिन समस्याओं के बारे मे हिन्दी मे पर्याप्त साहित्य उपलब्ध नहीं है । परिणाम स्वरूप हमे सही ढंग से सोचने व जन-समुदाय को प्रशिक्षित करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है ।
'जनसंख्या प्रदूषण और पर्यावरण' पुस्तक मे लेखक ने कड़ी मेहनत कर गम्भीर समस्याओं के कारणों और निदान को सरल ढंग से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है । उन्होंने मानव-मूल्यों का पर्यावरण के सापेक्ष मे सुन्दर ढंग से आकलन है । नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का जीवन के विभिन्न पहलुओं में पर्यावरण से क्या सम्बन्ध रहा है, इसको अनुपम एवं सरस ढंग से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है । इस औद्योगिक युग में प्रकृति को नष्ट करके मानव अधिकतम सुख- सुविधाएँ प्राप्त कर रहा है, जो उसके अस्तित्व के लिए चिंता का कारण हो सकती हैं । यह पुस्तक न केवल पारिस्थितिकी विज्ञान व पर्यावरण को सैद्धांतिक रूप से समझने में सहायक होगी बल्कि पर्यावरण के संरक्षण एवं इष्टतम उपयोग (Optinization) से भी पाठकों को अवगत कराएगी ।
जन्म : 16 मार्च, 1939
शिक्षा : एम.ए. ( राजनीति विज्ञान), एम.एड. ( रिसर्च स्कॉलर) ।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन ।
सम्मान : राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर द्वारा रचनाधर्मिता, महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ ज्ञान की पुस्तक लेखन पर सम्मान । राजस्थान सरकार द्वारा शिक्षक पुरस्कार । भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण पुस्तक लेखन पर राष्ट्रीय स्तर का प्रथम पुरस्कार ।
राजस्थान सरकार पर्यावरण विभाग द्वारा पत्रवाचन पर राज्यस्तरीय सम्मान ।
राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में सैकडों लेख प्रकाशित ।
कृतियाँ : जनसंख्या प्रदूषण और पर्यावरण, जनसंख्या विस्फोट और पर्यावरण, मानव और पर्यावरण, असंतुालित पर्यावरण और विश्व, पर्यावरण एवं महिलाएँ, पृथ्वी सौर कुकर कैसे?, प्रौढ़ एवं पर्यावरण, पर्यावरण शिक्षा, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पर्यावरण ।
संपर्क : कीकाणी व्यासों का चौक बीकानेर ।