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आप यह पुस्तक उठाकर पढ़ रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आप कहीं-न-कहीं आर्थिक, सामाजिक और आध्यात्मिक शांति तलाश रहे हैं। बेशक हजारों युगों से मानव का पथ-प्रदर्शन करनेवाली श्रीमद्भगवद्गीता आपके लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी कभी यह महाबली अर्जुन या उन्नत महापुरुषों की प्रतिकूल अवस्थाओं में रही है।
‘जीने की राह’ में मौजूद श्रीमद्भगवद्गीता पर आधारित ‘सफलता के व्यावहारिक नियम’ आपके जीवन को सुखद और मंगलमय बनाने के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। इस पुस्तक में वे सनातन रहस्य छिपे हैं, जो आपके विशिष्ट स्वप्नों को साकार करने में आपका मार्गदर्शन और आपकी सहायता करेंगे। यह इस धारणा को पुष्ट करती है कि आर्थिक या आध्यात्मिक सफलता केवल सुनिश्चित योजनाओं, उच्च महत्त्वाकांक्षा और कठिन परिश्रम से ही प्राप्त हो सकती है।
प्रख्यात टेलीविजनकर्मी सुहैब इल्यासी ने इस पुस्तक में स्वयं अपने जीवन में श्रीमद्भगवद्गीता की व्यावहारिक उपयोगिता का प्रेरणात्मक उल्लेख किया है। उनका मानना है कि जब हम श्रीमद्भगवद्गीता द्वारा बताए तरीके से जीवन गुजारना शरू करते हैं तो फिर प्रकृति से तादात्म्य सहज ही स्थापित हो उठता है और जीवन में सुख-सौभाग्य, सुस्वास्थ्य, सुमधुर संबंध और भौतिक सुख अनायास ही प्राप्त होने लगते हैं।
यह पुस्तक जीवन में आध्यात्मिक उत्थान और स्वयं की पहचान करानेवाली तथा जीवन को जबरदस्त उत्प्रेरणा से भर देनेवाली एक व्याहारिक कृति है।
सुहैब इल्यासी
जो लोग 21वीं सदी में पैदा हुए हैं, वो भले सुहैब इल्यासी को अच्छे से न जानते हों मगर उससे पहले जनमे लोगों के लिए सुहैब इल्यासी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। रात में जी टी.वी., इंडिया टी.वी. या फिर दूरदर्शन पर जैसे ही उनके क्राइम शो ‘इंडियास मोस्ट वांटेड’ की धुन बजती थी, लोग समझ जाते थे कि आज फिर किसी गैंगस्टर की शामत आनेवाली है। सुहैब इल्यासी देश के पहले टेलेविजन क्राइम शो के जनक माने जाते हैं।
सभी के जीवनचक्र का पहिया घूमता है लेकिन जब सुहैब इल्यासी के जीवन का पहिया घूमा तो उन्होंने खुद को उसी जेल की सलाखों के पीछे पाया, जिनमें वह अपने कार्यक्रम की मदद से अन्य कथित अपराधियों को पहुँचाते आए थे। दहेज-हत्या के आरोप में सुहैब इल्यासी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई लेकिन जैसे सूर्य सच की तरह सुबह जरूर निकलता है, ठीक उसी तरह उनके जीवन का सच भी सामने आया और उच्च न्यायालय ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया। सुहैब इल्यासी का अटूट विश्वास है कि विपदा, प्रतिकूल परिस्थिति और संघर्ष में डालकर ईश्वर केवल उन्हें सनातन शास्त्र श्रीमद्भगवद्गीता की अनंतरता प्रदान करना चाहते थे। इस पुस्तक का अधिकांश भाग उन्होंने तिहाड़ जेल में रहते हुए लिखा।