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दैनिक जीवन में अनेक उदाहरणों पर दृष्टि डालने से हमें अपने नैतिक बल का अंकन प्राप्त होगा। विचार, वाणी तथा कर्म में हम जितने अधिक काल अपने विवेक की अनुकूलता में बने रहने के अभ्यस्त होते जाएँगे, हमारी नैतिक शक्ति उसी के अनुरूप अधिक होती जाएगी।
कुछ परिस्थितियाँ स्वयं हमारे जीवन में ऐसे अवसर लाती रहती हैं जिनके आधार पर अपनी नैतिक शक्ति का निरंतर मूल्यांकन किया जा सकता है। जैसे, विद्यार्थीकाल में हमने कल्पना की कि जीवन में बड़े-से-बड़ा प्रलोभन भी हमें सही काम करने से नहीं डिगा सकता। अब देखना होगा कि परीक्षाकाल में हमारी मनःस्थिति क्या रही? यदि किसी प्रकार की बेईमानी करने की इच्छा भी मन में उठती है तो स्पष्ट है कि बड़े-से-बड़ा प्रलोभन तो दूर, अभी तक हम छोटे प्रलोभनों पर भी विजय प्राप्त नहीं कर पाए हैं। ऐसी परिस्थिति में स्वीकार करना होगा कि हमारी नैतिक शक्ति का स्तर अभी नीचा ही है।
—इसी पुस्तक से
इस पुस्तक में जीवन को संस्कारवान बनाने और उसे सही दिशा में ले जाने के जिन सूत्रों की आवश्यकता है, उनका बहुत व्यावहारिक विश्लेषण किया है। लेखक के व्यापक अनुभव से निःसृत इस पुस्तक के विचार मौलिक और आसानी से समझ में आनेवाले हैं।
जीवन को सफल व सार्थक बनाने की प्रैक्टिकल हैंडबुक है यह कृति।
स्वर्गीय रायबहादुर महाबीरसिंह सिंहल के सात पुत्रों में पाँचवें। बाल्यकाल में एक असाधारण स्काउट और सर्वांगीण सर्वोत्कृष्ट छात्र के नाते इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सन् 1954-55 सत्र के एकमात्र चांसलर्स पदक विजेता। यहीं से फिजिक्स में एम.एस-सी. और एल-एल.बी. की उपाधियाँ पाईं। सन् 1955 में आई.पी.एस. में चुने गए। उत्तर प्रदेश में नियुक्ति हुई। पुलिस अधीक्षक, आई.जी. पुलिस, प्रशिक्षण विद्यालय के प्रधानाचार्य जैसे पदों पर कार्य करते हुए भारत सरकार में अतिरिक्त गृह सचिव तथा महानिदेशक नागरिक सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण पद से सेवा-निवृत्त हुए। अपने अनुकरणीय जीवन से असंख्य पुलिस अधिकारियों के आदर्श बने। दस्यु-उन्मूलन, अदम्य साहस, वीरता तथा सराहनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित। सेवा-निवृत्ति के बाद केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष नियुक्त हुए। वर्ष पर्यंत त्याग-पत्र देकर राजनीति में प्रवेश। राजनीति करने नहीं, राजनीति के क्षेत्र में चरित्रवान, प्रतिष्ठित लोगों के पुनरागमन को प्रेरित करने के लिए।
अपने सेवाकाल में दस हजार कॉलेज और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों एवं प्राध्यापकों के अलावा आई.पी.एस., आई.ए.एस. तथा राज्यों की प्रशिक्षण संस्थाओं एवं विदेश में लेक्चर देते रहे हैं। इन वार्त्ताओं को सुनने पर श्रोता एक ऐसी दुनिया में पहुँच जाते हैं, जहाँ प्रकाश-ही-प्रकाश है।