Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Jeevan-Mrityu KalChakra   

₹350

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ramanath Khaira
Features
  • ISBN : 9788177213553
  • Language : Hindi
  • ...more

More Information

  • Ramanath Khaira
  • 9788177213553
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 192
  • Hard Cover

Description

युगों-युगों से मानव प्रयासरत है कि वह मुत्यु पर विजय प्राप्त कर सके। वह इच्छानुसार जीवन जी सके, पर उसे इसमें लेशमात्र भी सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। जो जन्मा है, उसका मरण निश्चित है; फिर भी शरीर में बसनेवाली आत्मा अमर है। पुनर्जन्म के इस चक्र का भलीभाँति अध्ययन कर देश-देशांतर में होनेवाली घटनाओं को प्रामाणिक रूप से उद्यत करते हुए इस पुस्तक का सृजन श्री रमानाथ खैरा ने किया है। 
प्रत्येक जन्म में प्रारब्ध के आधार पर जीवन जीता हुआ प्राणी अपने कर्मों का फल भोगता है और अपने पुरुषार्थ के माध्यम से ही इसे कम कर सकता है, ताकि अगले जन्म में उसे वर्तमान जन्म के पुरुषार्थ से कम कष्ट भोगना पड़े। इसके लिए उन्होंने आधारभूत ग्रंथों, उपनिषद्, वेदांत सूत्र और श्री भगवद्गीता का गहरा अध्ययन किया है। जगह-जगह गीता के उपदेशों के आधार पर धर्म, समाज, जीवन, मृत्यु, लोक, परलोक की मर्मज्ञतापूर्ण विवेचना करने में खैराजी सफल हुए हैं।  
शुभ-अशुभ कर्म, जीवन में लाभ-हानि, सफलता या असफलता में भी प्रारब्ध का परिणाम होता है। खैराजी ने शुभ कर्मों को अगले जन्म के सुखों का आधार माना है, लेकिन जन्म-जन्म के इस दुःखदायी चक्र से छूटने के लिए मोक्ष या मुक्ति के मार्ग को भी खोजने का महान् प्रयास किया है।
आशा है यह पुस्तक अदृश्य जगत् के रहस्य खोजनेवाले ज्ञान-पिपासुओं को ज्ञान की वर्षा से सिंचित करेगी। 
—डॉ. भागीरथ प्रसाद
(आमुख से)

_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

आमुख — Pg. 7

लेखकीय — Pg. 11

1. पहला प्रकरण:जीवन रहस्य — Pg. 15

2. दूसरा प्रकरण:जगत् रहस्य — Pg. 100

3. तीसरा प्रकरण:सुख रहस्य — Pg. 142

4. चौथा प्रकरण:ईश्वर रहस्य — Pg. 154

The Author

Ramanath Khaira

जन्म : 07 सितंबर, 1910, पाली (ललितपुर), उ.प्र.।
शिक्षा : स्नातक होने के पश्चात् कानपुर एस.डी. कॉलेज से वकालत की उपाधि 1938 में प्राप्त की।
कृतित्व : कुशाग्र बुद्धि, बहस की धाराप्रवाह ओजस्वी शैली एवं विधि-विधान का ज्ञान तथा अद्भुत सूझ-बूझ के कारण फौजदारी वकील के रूप में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अपार प्रसिद्धि अर्जित की। सन् 1940 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आवाज बुलंद की। फलस्वरूप अनेक बार झाँसी और फतेहगढ़ जेलों में सजा भोगी। सन् 1952 से 1962 तक उ.प्र. विधान सभा के सदस्य रहे।
लेखन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं 
में लेख और कविताएँ प्रकाशित। ‘रामचरितामृत’, ‘जीवन रहस्य’, ‘साधनों की विवेचना’ (गद्य में) तथा ‘प्रवासिता प्रिया’ (सीता बनवास) (पद्य में) प्रकाशित।
स्मृतिशेष : 17 दिसंबर, 1998।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW