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जीवन सरल है’ पुस्तक की विशेषता है इसकी पठनीयता। यह सीधी-सरल भाषा एवं बोलचाल की शैली में लिखी गई पुस्तक है। एक युवक रोहित की कहानी के माध्यम से धारणाएँ प्रस्तुत की गई हैं—किस प्रकार इन धारणाओं से प्रभावित हो उसका आध्यात्मिक विकास होता है। अनेक कहानियों व हास्य कथाओं के समायोजन से पुस्तक का विषय रोचक तथा समझने में आसान हो गया है।
दुर्भाग्यवश आज का युवक नैतिक-अनैतिक, श्लील-अश्लील में अंतर नहीं पहचान पाता, जिस कारण हमें समाज में इतनी हिंसा और अपराध देखने व सुनने को मिलते हैं। आशा है, यह पुस्तक पाठक को जीवन को देखने का वैकल्पिक नजरिया देगी और तब उनमें सभी जीवों के प्रति आदर व करुणा का भाव जागेगा।
जीवन के मर्म को समझानेवाली तथा आत्मविकास में सहायता करनेवाली पठनीय पुस्तक।
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अनुक्रम
समर्पण — Pgs. 5
प्रस्तावना — Pgs. 7
उद्देश्य — Pgs. 11
पहला अध्याय
1. जीवन सरल है — Pgs. 19
2. नया नजरिया — Pgs. 22
3. सच्चा धन — Pgs. 25
4. जीवन का अर्थ — Pgs. 28
दूसरा अध्याय
5. जीवन कहानी — दो मिनट में — Pgs. 33
6. विचार और विचार-शक्ति — Pgs. 36
7. विचार प्रक्रिया — Pgs. 38
8. विचारधारा — Pgs. 41
9. मन-आधारित पहचान — Pgs. 45
10. मन को निहारना — Pgs. 48
11. मन-हीन अवस्था — उपस्थिति का अहसास — Pgs. 51
12. साक्षी उपस्थिति — Pgs. 54
तीसरा अध्याय
13. जानकारी, ज्ञान, और विवेक — Pgs. 59
14. अहं — Pgs. 61
15. झरना मौसी — Pgs. 65
16. कृतज्ञता — Pgs. 70
17. मृत्यु — जीवन का एक पहलू — Pgs. 72
18. जीवन को स्वीकारना — Pgs. 75
चौथा अध्याय
19. कर्मकांड या धर्म — Pgs. 81
20. धर्म और संप्रदाय — Pgs. 84
21. धर्म क्या है? — Pgs. 87
22. भीतर देखना — Pgs. 89
23. रोहित की खोज — Pgs. 92
24. ध्यान-साधना — Pgs. 99
25. संवेदना और प्रतिक्रिया — Pgs. 102
26. संवेदना को निहारना — Pgs. 106
पाँचवाँ अध्याय
27. समय और मन — Pgs. 111
28. मानसिक-समय — Pgs. 116
29. रूपा और रोहित — Pgs. 118
30. प्रेम संबंध — Pgs. 121
छठा अध्याय
31. संतोष — Pgs. 127
32. संपूर्ण स्वीकृति — Pgs. 130
33. भय का साया — Pgs. 134
34. भय का निवारण — Pgs. 140
35. भय क्या है? — Pgs. 144
36. ऐसा ही है! — Pgs. 146
1955 में जनमी विनीता वर्मा ने स्कूल के बाद वास्तुकला की शिक्षा पूरी की, फिर पढ़ाया भी और प्रैक्टिस भी की। 1977 में उनका विवाह वास्तु विशेषज्ञ बलवीर वर्मा से हुआ। एक पुत्र और एक पुत्री को शिक्षित कर विनीता ने अपना सांसारिक दायित्व पूरा किया और फिर अपना ध्यान जीवन के उच्च लक्ष्यों की ओर मोड़ा। इस मार्ग पर चलते हुए उन्होंने कई आध्यात्मिक विचारधाराओं का अध्ययन किया। अंततः ध्यान व चिंतन-मनन के प्रति समर्पित हुईं। उन्हें यह अहसास भी हुआ कि यदि आज की युवा पीढ़ी में सजगता आए, तो बहुत कुछ जो अनैतिक हो रहा है, उसमें कमी आएगी। इस उद्देश्य से अधिकतम जनसंपर्क के लिए विनीता ने हिंदी भाषा को चुना और अपने विचार लिखने शुरू किए। यह पुस्तक उसी विचार-मंथन का नवनीत है।