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ऐसा कहा जाता रहा है कि संविधान की पाँचवीं अनुसूची आदिवासियों के लिए उनका धर्मग्रंथ है, जिसके प्रति उनकी आस्था है, उनकी श्रद्धा है। यह धर्मग्रंथ उनके जीने की आशा है, उनका स्वर्णिम भविष्य है। लेकिन संविधान रूपी इस धर्मग्रंथ के प्रति अब आस्था टूट रही है और उनकी श्रद्धा कम हो रही है। अब यह आस्था बनाए रखने का धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि आदिवासी इसे कोरे कागज की तरह देख रहे हैं।
इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत विश्लेषण पाँचवीं अनुसूची के संवैधानिक प्रावधानों के अलावा आदिवासी समाज के उन तमाम पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश है, जिसका सीधा संबंध संविधान की पाँचवीं अनुसूची से है। वर्तमान संदर्भ में यह विश्लेषण पाँचवीं अनुसूची के उल्लंघन के कारण उत्पन्न होने वाली उन प्रतिकूल परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालने की कोशिश है, जिनके कारण आदिवासी समाज का विकास बाधित होने की आशंका को बल मिल रहा है। वस्तुतः झारखंड का नवनिर्माण का मकसद हमारी आनेवाली पीढ़ी के भविष्य का निर्माण। इस पुस्तक को प्रासंगिक बनाने के लिए ऐतिहासिक संदर्भों में विद्यमान तथ्यों को भरसक जुटाने की कोशिश करते हुए, झारखंड नवनिर्माण का मार्ग कैसे तय हो, इसकी चिंताधारा ढूँढ़ने की कोशिश की गई है।
आशा है यह पुस्तक आदिवासियों के विकास और झारखंड के नवनिर्माण की दिशा में ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी।
जन्म :5 अप्रैल, 1960 को ग्राम-नगड़ा, मांडर, जिला-राँची में।
शिक्षा :कृषि विज्ञान स्नातकोत्तर, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय।
कृतित्व :दैनिक अखबारों एवं पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर वैचारिक लेख प्रकाशित। संस्थापक अध्यक्ष, आजसू, 1986-1992; केंद्रीय सचिव झारखंड मुक्ति मोर्चा, 1993-2000; अलग राज्य आंदोलन में सक्रिय 1986-2000 तक; केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई झारखंड विषयक समिति के सदस्य 1989; झारखंड राज्य स्वशासी परिषद् के कार्यकारी पार्षद, वित्त एवं पशुपालन 1995-2000।
संप्रति :केंद्रीय प्रवक्ता आजसू पार्टी।
संपर्क :शास्त्री नगर, भीठ्ठा, काँके रोड़, राँची-834008।
ई-मेल : prabhakar_tirki@rediffmail.com