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झारखंड में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रवेश हुआ तो यहाँ उसे पग-पग पर विद्रोह का सामना करना पड़ा। अठारहवीं शताब्दी से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक झारखंड की यह धरती धधकती रही और अंग्रेजी सत्ता को बार-बार मुँह की खानी पड़ी। पुस्तक में कुछ ऐसे नामचीन और गुमनाम नायकों की संक्षिप्त कहानी है। कुछ ऐसे नायक हैं, जो अपने क्षेत्र तक ही सीमित रह गए; कुछ अपने समाज द्वारा ही याद किए जाते रहे; कुछ बस जयंती व पुण्यतिथि पर ही अखबारों में छपते रहे। पहली बार यहाँ छोटानागपुर, सिंहभूम, सरायकेला से लेकर संताल परगना के क्रांतिकारियों को याद किया जा रहा है। क्रांतिकारियों की सूची तो बहुत लंबी है। फिर भी नई पीढ़ी के लिए यह पुस्तक बेहद महत्त्वपूर्ण है। ये पचास क्रांतिकारी पाँच हजार के प्रतिनिधि हैं।
संजय कृष्ण
जन्म : जमानियाँ स्टेशन, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा : स्नातकोत्तर हिंदी, प्राचीन इतिहास एवं एम.जे.एम.सी.।
गोपाल राम गहमरी और हिंदी पत्रकारिता पर शोध-प्रबंध। ‘जमदग्नि वीथिका’ नामक पत्रिका का संपादन व प्रकाशन।
कृतित्व : ‘होती बस आँखें ही आँखें’ में नागार्जुन पर लंबा लेख प्रकाशित। ‘हिंदी पत्रकारिता : विविध आयाम’ पुस्तक में हिंदी पत्रकारिता पर शोधपूर्ण लेख संकलित। देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सौ से अधिक लेख-रिपोर्ट, समीक्षा आदि प्रकाशित। ‘झारखंड केपर्व-त्योहार, मेल और पर्यटन स्थल’, ‘झारखंड के मेले’, ‘गोपाल राम गहमरी की प्रसिद्ध जासूसी कहानियाँ’ पुस्तकें प्रकाशित। संजीव चट्टोपाध्याय के ‘पालामौ’ पर हिंदी में संपादन। साहित्य अकादमी के लिए गोपाल राम गहमरी पर मोनोग्राफ लेखन।
पुरस्कार : केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय का प्रथम राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार।
संपर्क : न्यू तपोवन गली, नीचे मोहल्ला, कोकर, राँची-834001
मोबाइल : 09835710937