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झारखंड की विविधतापूर्ण संस्कृति को देखना हो तो यहाँ के मेले इसके सबसे अच्छे उदाहरण हो सकते हैं। इन मेलों में हम झारखंड की पुरातन और अधुनातन संस्कृति, समाज और उनके कार्य-व्यापार को देख-समझ सकते हैं। हम देख सकते हैं उनकी पारंपरिक व्यवस्था, उनके खान-पान, जीवन-शैली, रीति-रिवाज, नृत्य-गीत, हरवा-हथियार, ढोल, मांदर, तुरही, भेर। झारखंड में मेले अब भी जीवित और जीवंत है।
इस पुस्तक में ईंद जतरा मेला, माघ मेला, राँची पहाड़ी का सावन मेला, मुड़मा मेला, जेठ जतरा मेला, शिव मंडा मेला, मुड़हर पहाड़ का मेला, फगडोल मेला, राष्ट्रीय खादी मेला, स्वर्णरेखा महोत्सव मेला, बाँग्ला सांस्कृतिक मेला, रामनवमी मेला, दुर्गा पूजा मेला, दशानन दहन मेला, टुसू मेला, जगन्नाथपुर रथयात्रा मेला, सुकन बुरू मेला, महामाया मंदिर का मेला, चैत्र पूर्णिमा मंडा मेला, रामरेखा धाम मेला, ऐतिहासिक फाल्गुन मेला, शहादत दिवस मेला और बुधू भगत गाँव के मेलों का बड़ा सजीव और रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है जिससे पाठक झारखंड की समृद्ध परंपराओं और वहाँ के निवासियों की श्रद्धा-भक्ति से परिचित होंगे।
मेलों के माध्यम से झारखंड के जन-जीवन, रीति-रिवाज और लोक-संस्कृति को समझने में सहायक एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक।
संजय कृष्ण
जन्म : जमानियाँ स्टेशन, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा : स्नातकोत्तर हिंदी, प्राचीन इतिहास एवं एम.जे.एम.सी.।
गोपाल राम गहमरी और हिंदी पत्रकारिता पर शोध-प्रबंध। ‘जमदग्नि वीथिका’ नामक पत्रिका का संपादन व प्रकाशन।
कृतित्व : ‘होती बस आँखें ही आँखें’ में नागार्जुन पर लंबा लेख प्रकाशित। ‘हिंदी पत्रकारिता : विविध आयाम’ पुस्तक में हिंदी पत्रकारिता पर शोधपूर्ण लेख संकलित। देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सौ से अधिक लेख-रिपोर्ट, समीक्षा आदि प्रकाशित। ‘झारखंड केपर्व-त्योहार, मेल और पर्यटन स्थल’, ‘झारखंड के मेले’, ‘गोपाल राम गहमरी की प्रसिद्ध जासूसी कहानियाँ’ पुस्तकें प्रकाशित। संजीव चट्टोपाध्याय के ‘पालामौ’ पर हिंदी में संपादन। साहित्य अकादमी के लिए गोपाल राम गहमरी पर मोनोग्राफ लेखन।
पुरस्कार : केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय का प्रथम राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार।
संपर्क : न्यू तपोवन गली, नीचे मोहल्ला, कोकर, राँची-834001
मोबाइल : 09835710937