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मानव के उद्भव और विकास के लाखों वर्षों का इतिहास उत्क्रांति, संस्कृति, सभ्यता और व्यवस्था का इतिहास रहा है। प्राकृतिक और पाशविक अवस्था से उत्क्रमित होते हुए मानव समुदाय ने उद्भव और विकास के कई दौर देखे हैं, कई प्रलय और संहारों का सामना किया है। बावजूद इसके इनसान अभी न सिर्फ जीवित है, बल्कि अन्य प्राणियों के मुकाबले ज्यादा सुविकसित है।
स्वतंत्र और स्वशासी लोकतंत्र महज एक व्यवस्था का नाम नहीं है, बल्कि वह एक संस्कृति है। लोकतंत्र की संस्कृति और संस्कृति में लोकतंत्र अगर सीखना हो तो भारत सहित दुनिया के उन तमाम आदिवासी-मूलवासियों की ओर झाँकना पड़ेगा, जो पिछले हजारों वर्षों से अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे हैं। इसी संघर्ष की परंपरा एवं लोकतंत्र की स्वशासी, स्वावलंबी और स्वाभिमानी संस्कृति व व्यवस्था को इस पुस्तक में विद्वान् लेखकों ने समझने व समझाने का प्रयास किया है।
इस पुस्तक से न सिर्फ झारखंड और अपने देश के शासकों को एक दिशा मिलेगी, बल्कि दुनिया चलानेवाले नीति-निर्धारकों को भी एक रास्ता मिलेगा, एक अवधारणा मिलेगी। नए झारखंड से नए भारत और नए भारत से नई दुनिया, जो शोषण, दमन और अन्याय से मुक्त दुनिया होगी, का सपना देखनेवालों के लिए यह पुस्तक निश्चय ही एक आदर्श मार्गदर्शिका बनेगी।
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अनुक्रमणिका
स्वशासी समाज गढ़ने की मार्गदर्शिका — Pgs. 7
परंपरा
1. झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत अधिनियम का विस्तार : आदिवासी स्वशासन — Pgs. 13
2. अनुसूचित क्षेत्रों के लिए स्वशासी व्यवस्था हेतु कानून की रूपरेखा — Pgs. 29
3. झारखंडी स्वशासन की राजनीतिक चेतना — Pgs. 56
4. अबुआ दिशुम, अबुआ राज — Pgs. 110
5. माँझी-परगना से पंचायत तक — Pgs. 156
पंचायत में महिला
6. पंचायत चुनाव के उजले-काले पक्ष — Pgs. 173
7. यूँ ही नहीं मिला महिलाओं को आरक्षण — Pgs. 178
8. पंचायत में गुणवत्तापूर्ण महिला भागीदारी — Pgs. 181
विकास और विस्थापन
9. हल से लेकर कंप्यूटर तक — Pgs. 187
10. खनन, पर्यावरण और पंचायत — Pgs. 200
11. झारखंड पंचायती राज संभावनाएँ और चुनौतियाँ — Pgs. 205
12. झारखंड में पंचायती राज किस ओर? — Pgs. 213
13. झारखंड पंचायती राज अधिनियम कोकम शक्ति मिली है — Pgs. 218
14. झारखंड के अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत संबंधी नया कानून — Pgs. 223
15. पंचायत चुनाव का पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव — Pgs. 227
16. झारखंड पंचायती राज व्यवस्था में बाल अधिकार — Pgs. 234
सुनील मिंजस्वतंत्र पत्रकार, लेखक, शोधकर्ता, चिंतक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता; आदिवासियों के मुद्दे पर दो सौ से अधिक शोधपरक आलेख लिखे। ‘तुम मुझे नहीं रोक सकते’ तथा ‘लुटती जिंदगी घुटता बचपन’ पुस्तकें प्रकाशित; कई पुस्तकों का संपादन किया। लेखन के लिए एन.एफ.आई. मीडिया फेलोशिप अवार्ड से सम्मानित।संप्रति : झारखंड ह्यूमन राइट्स मूवमेंट के अध्यक्ष।घनश्यामवरिष्ठ समाजकर्मी एवं पर्यावरण विशेषज्ञ। ‘एक तरीका’, ‘नगाड़ा’ तथा ‘जनवाणी’ मासिक पत्रिका के संयुक्त संपादक। ‘अभियान’ त्रैमासिक का संपादन। ‘दृष्टि-दिशा’, ‘जब नदी बँधी’, ‘झारखंड विचार पर विमर्श’, ‘तालाब झारखंड’, ‘देशज गणतंत्र’, ‘मरता पानी—मारता पानी’, ‘इंडिजिनोक्रेसी’ पुस्तकों का लेखन-संपादन।फैसल अनुरागवरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिंतक एवं आदिवासी विषयों के विशेषज्ञ; ‘जनहक’ पत्रिका के संस्थापक संपादक। करीब बाईस पुस्तकों का लेखन व संपादन, जिनमें ‘झारखंड दिशुम गाथा’, ‘झारखंड का दार्शनिक एवं सांस्कृतिक विमर्श’, ‘संताल हूल : प्रतिरोध की चेतना’, ‘क्षेत्रीय पत्रकारिता के ग्लोबल फलक’, ‘सेक्यूलर भारत की विवेक चेतना बनाम सांप्रदायिक फासीवाद’ चर्चित।