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यह पुस्तक प्रसिद्ध पत्रकार श्री अनुज सिन्हा की झारखंड की राजनीति, झारखंड के हालात व यहाँ की समस्या, व्यवस्था तथा कार्य-संस्कृति से जुड़ी टिप्पणियों का संकलन है।
इनमें से अधिकांश राजनीतिक घटनाओं से जुड़ी हुई हैं। सरकार चाहे जिस किसी की हो, अगर वहाँ किसी प्रकार की गड़बड़ी दिखी, सरकार द्वारा ऐसे निर्णय लिये गए, जो जनहित में नहीं थे, विधायकों ने विधानसभा की गरिमा को ठेस पहुँचाई, सदन को बेवजह बाधित किया, अपना वेतन-सुविधा बढ़ाने में लगे रहे, सरकार में तबादले का खेल चला, सरकार बनाने-गिराने में कहीं खेल दिखा, कानून-व्यवस्था की स्थिति गड़बड़ाई, किसी आयोग में ऐसे लोगों को शामिल करने का प्रयास किया गया जो गलत था, हर बार बेखौफ टिप्पणी लिखने का प्रयास किया। मकसद था—व्यवस्था को बेहतर बनाना। राज्य का अहित करनेवालों पर अंकुश लगाना। ऐसे अनेक मौके आए, जब लगा कि सरकार का यह निर्णय जनता के खिलाफ है। उन मुद्दों को तीखे, लेकिन तार्किक तरीके से उठाया। इसमें कोई भेदभाव नहीं बरता। सरकार जिस किसी दल की हो, अपनी बात रखी। यह संकलन इसलिए आवश्यक है कि लोग जान सकें कि झारखंड किन हालातों से गुजरा है। यहाँ के राजनीतिज्ञों की किस तरह की भूमिका रही है।
सारी सामर्थ्य-साधन-शक्ति होने के बावजूद झारखंड विकास की दौड़ में पीछे न रहे, विकसित हो और प्रदेश की समस्याओं का अंत हो, यह पुस्तक उस आत्मालोचन का एक उपक्रम मात्र है।___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
अनुक्रम | |
अपनी बात — Pgs. 5 | 13. हालात यह है — Pgs. 174 |
राज्य, राजनीति और कामकाज | 14. अमन-चैन विरोधियों पर काररवाई का वक्त — Pgs. 176 |
1. एक सपना, जो आज पूरा होगा — Pgs. 21 | 15. ऐसे तो भरोसा टूटेगा — Pgs. 179 |
2. खुशी के क्षण — Pgs. 23 | 16. यह अकर्मण्यता है — Pgs. 181 |
3. भय और उत्साह के बीच फँसी रही राजधानी राँची — Pgs. 25 | पैनी नजर |
4. मंत्रियों को मनाने में जुटी रही सरकार, ठगी गई झारखंडी जनता — Pgs. 27 | 1. बिकने की पुष्टि — Pgs. 185 |
5. झारखंड तो मिला, अब सिंहभूमवासियों को अलग विश्वविद्यालय चाहिए — Pgs. 32 | 2. सबके चेहरे सामने — Pgs. 187 |
6. गुरुजी, शहीदों-आंदोलनकारियों को मत भूलिएगा — Pgs. 34 | 3. सफाई का मौका — Pgs. 189 |
7. मधु कोड़ाजी, अब आप मुख्यमंत्री हैं, इतिहास गढि़ए — Pgs. 36 | 4. बाहरी प्रत्याशी क्यों? — Pgs. 191 |
8. निर्मल दा-देवेंद्र मांझी के सपने को साकार कीजिए — Pgs. 41 | 5. भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम — Pgs. 193 |
9. कोड़ा सरकार का एक साल — Pgs. 44 | 6. बिकिए मत — Pgs. 195 |
10. बाबूलाल मरांडी को दबाना यूपीए-एनडीए के वश में नहीं — Pgs. 47 | 7. निगाह रखें — Pgs. 197 |
11. दबाव में लिया गया एक अलोकतांत्रिक कदम — Pgs. 49 | 8. आप आगे आएँ, धरना-प्रदर्शन करें — Pgs. 199 |
12. सरकार बच गई, तो झामुमो पर होगा भारी दबाव — Pgs. 51 | 9. विधायकजी, दिखाकर दीजिए वोट, कोई शक नहीं करे — Pgs. 201 |
13. हर बार गुरुजी के साथ अन्याय हुआ है — Pgs. 53 | 10. अगर कानून का राज चले, तभी होगी सफाई — Pgs. 204 |
14. अपनों ने चक्रव्यूह में फँसाया गुरुजी को — Pgs. 56 | 11. सीबीआई जाँच भी हो ही जाए — Pgs. 206 |
15. कमजोर क्यों हो गए गुरुजी? — Pgs. 59 | 12. दलों का चरित्र — Pgs. 208 |
16. झारखंड को सरकार चाहिए! — Pgs. 61 | 13. आसान नहीं थी चुनौती — Pgs. 211 |
17. चाहिए सक्षम सीएम व सरकार — Pgs. 63 | हस्तक्षेप |
18. राष्ट्रपति शासन की ओर झारखंड? — Pgs. 65 | 1. मुख्यमंत्रीजी, रोड जाम कर उद्घाटन क्या उचित है? — Pgs. 215 |
19. गलत संकेत — Pgs. 67 | 2. गुरुजी, बारगेन करना है, तो झारखंड के लिए करिए — Pgs. 218 |
20. चुनौतियाँ हैं, तो अवसर भी — Pgs. 69 | 3. मुख्यमंत्रीजी! आप ही तलाशें विकल्प — Pgs. 220 |
21. जनता का भी खयाल कीजिए — Pgs. 71 | 4. राज्यपाल हस्तक्षेप करें — Pgs. 222 |
22. उपचुनाव के संकेत — Pgs. 73 | 5. महामहिम, यही है हकीकत — Pgs. 225 |
23. नेता क्यों तय करें कुलपति — Pgs. 76 | 6. इसे कहते हैं असली निरीक्षण — Pgs. 227 |
24. फिर भी इन्हें इज्जत चाहिए! — Pgs. 79 | 7. प्रधानमंत्री से — Pgs. 230 |
25. सरकार चुप क्यों है? — Pgs. 82 | 8. यही कार्य संस्कृति चाहिए — Pgs. 233 |
26. इस धुंध को साफ कीजिए — Pgs. 86 | 9. आम जनता को आहत करनेवाले फैसले न लें — Pgs. 236 |
27. यह सरकार है या सरकस! — Pgs. 89 | संवेदना |
28. विलंब का खेल — Pgs. 91 | 1. शर्मनाक है असम की घटना — Pgs. 241 |
29. युवा कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी — Pgs. 94 | 2. तो क्या बाहर जाना छोड़ दें? — Pgs. 243 |
30. स्पीकर की दूरदृष्टि — Pgs. 97 | 3. मर रहा है समाज? — Pgs. 245 |
31. मंत्रियों को मलाई चाहिए — Pgs. 99 | 4. यह वहशीपन है — Pgs. 248 |
32. ं ं ंतो गरिमा और बढ़ गई होती! — Pgs. 101 | 5. जिस दिन जनता जाग जाएगी, हिसाब माँगेगी — Pgs. 251 |
33. शह और मात का खेल — Pgs. 104 | 6. क्या यह महिला सच में दोषी है? — Pgs. 254 |
34. झारखंड की राजनीतिक उठा-पटक की कीमत खो गई जवानों की शहादत — Pgs. 107 | 7. शिक्षक माफ करें — Pgs. 256 |
35. इसे ठीक कौन करेगा? — Pgs. 110 | 8. तनाव में स्कूली बच्चे : बदल रहा है स्वभाव — Pgs. 258 |
36. नववर्ष में झारखंड की राजनीति — Pgs. 112 | 9. एक नायक का सम्मान — Pgs. 261 |
37. यह राजनीति नहीं, मजाक है — Pgs. 114 | 10. पौधे लगाएँ, जीवन बचाएँ — Pgs. 264 |
38. कांग्रेसी ही कांग्रेस को खत्म कर रहे हैं! — Pgs. 117 | 11. जिंदगी सबसे कीमती है, इसे बचाकर रखें — Pgs. 266 |
39. कुलपति के चयन में बाहरी-भीतरी न करें — Pgs. 121 | मान-सम्मान |
40. बोलने का नहीं, करने का वक्त — Pgs. 123 | 1. नेशनल गेम्स का टलना झारखंड के लिए शर्मनाक — Pgs. 271 |
41. सवाल नैतिकता का है — Pgs. 125 | 2. झारखंड की प्रतिष्ठा का सवाल — Pgs. 274 |
42. झारखंड सरकार के लिए भी आत्ममंथन का वक्त — Pgs. 127 | 3. सफल बनाना आपका भी दायित्व — Pgs. 276 |
43. शिक्षण-संस्थानों को बरबाद न करें राजनेता — Pgs. 129 | 4. खेल के मर्म को समझें — Pgs. 278 |
44. निशाने पर अफसर — Pgs. 131 | 5. अद्भुत और आभार — Pgs. 280 |
45. उम्मीदें-चुनौतियाँ — Pgs. 133 | 6. सिर ऊँचा करने का क्षण — Pgs. 284 |
46. शुतुरमुर्ग है कांग्रेस — Pgs. 136 | 7. राज्यपाल महोदय खुद पहल कीजिए! — Pgs. 286 |
47. संतोषजनक बजट — Pgs. 138 | आक्रोश |
48. कुछ ठोस करने का वक्त — Pgs. 140 | 1. खदेड़कर, पाक-बांग्लादेश में घुसकर मारिए — Pgs. 291 |
कानून-व्यवस्था | 2. अब खुद तय करे भारत — Pgs. 293 |
1. जमशेदपुर को जलने से बचाइए, आग में घी मत डालिए — Pgs. 145 | 3. निकम्मा है नगर निगम? — Pgs. 295 |
2. इस बवाल का दोषी कौन, छात्र संगठन भी जवाब दें! — Pgs. 147 | 4. बिजली दो, नहीं तो जेल जाओ — Pgs. 297 |
3. कानून का राज या जंगलराज? — Pgs. 149 | 5. चुप बैठने का समय नहीं — Pgs. 300 |
4. निकम्मी है जमशेदपुर पुलिस — Pgs. 152 | पहल |
5. यह कैसी क्रांति है? — Pgs. 154 | 1. अपने शहर के बारे में सोचिए — Pgs. 305 |
6. बंद-हड़ताल तो ब्रह्मास्त्र है — Pgs. 156 | 2. सोचिए, करिए, कुछ बोलिए — Pgs. 308 |
7. जिम्मेदार कौन? — Pgs. 158 | 3. क्यों नहीं बढ़ सकती विधानसभा की सीट? — Pgs. 312 |
8. कानून अब नाकाफी है — Pgs. 160 | 4. राष्ट्रधर्म निभाएँ — Pgs. 315 |
9. यह कैसी कानून-व्यवस्था? — Pgs. 162 | 5. राज्य के लिए भी सोचिए! — Pgs. 317 |
10. बद नहीं, बदतर — Pgs. 165 | 6. प्रयास का फल — Pgs. 320 |
11. बंद : सरकार और प्रशासन की भूमिका — Pgs. 168 | 7. एम्स को मत जाने दीजिए — Pgs. 322 |
12. कहाँ है सरकार? — Pgs. 171 | 8. अस्पताल के लिए जमीन दे सरकार या लोग सामने आएँ जमीन दान करें — Pgs. 325 |
झारखंड के चाईबासा में जन्म। लगभग 35 वर्ष से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। आरंभिक शिक्षा हजारीबाग के हिंदू हाई स्कूल से। संत कोलंबा कॉलेज, हजारीबाग से गणित (ऑनर्स) में स्नातक। राँची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई की। जेवियर समाज सेवा संस्थान (एक्स.आइ.एस.एस.) राँची से ग्रामीण विकास में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया। 1987 में राँची प्रभात खबर में उप-संपादक के रूप में योगदान। 1995 में जमशेदपुर से प्रभात खबर के प्रकाशन आरंभ होने पर पहले स्थानीय संपादक बने। 15 साल तक लगातार जमशेदपुर में प्रभात खबर में स्थानीय संपादक रहने का अनुभव। 2010 में वरिष्ठ संपादक (झारखंड) के पद पर राँची में योगदान। वर्तमान में प्रभात खबर में कार्यकारी संपादक के पद पर कार्यरत। स्कूल के दिनों से ही देश की विभिन्न विज्ञान पत्रिकाओं में लेखों का प्रकाशन। झारखंड आंदोलन या फिर झारखंड क्षेत्र से जुड़े मुद्दे और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन लेखन के प्रमुख विषय। कई पुस्तकें प्रकाशित। प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तकें—‘प्रभात खबर : प्रयोग की कहानी’, ‘झारखंड आंदोलन का दस्तावेज : शोषण, संघर्ष और शहादत’, ‘बरगद बाबा का दर्द’, ‘अनसंग हीरोज ऑफ झारखंड’, ‘झारखंड : राजनीति और हालात’, ‘महात्मा गांधी की झारखंड यात्रा’ एवं ‘झारखंड के आदिवासी : पहचान का संकट’।
पुरस्कार : शंकर नियोगी पुरस्कार, झारखंड रत्न, सारस्वत हीरक सम्मान, हौसाआइ बंडू आठवले पुरस्कार आदि।