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झारखंड राज्य प्राकृतिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और भौगोलिक संरचना की सघन विविधता का अद्भुत उदाहरण है। संगीत और नृत्य में झूमता यह प्रदेश मांदर और बाँसुरी की धुन पर जीते हुए सामूहिकता की भावना को आगे बढ़ाता है। करमा, सरहुल, टुसु, सोहराई जैसे पर्व और अनुष्ठानों के बीच जनजातीय जीवन की सादगी तथा स्वच्छता के साथ प्रकृति की सुषमा का वरदान इसकी विशेषता है। ‘चलना जहाँ नृत्य और बोलना जहाँ संगीत’—वास्तव में यही झारखंड की परिभाषा एवं प्रस्तावना है।
यह पुस्तक झारखंड के विषय में संपूर्ण जानकारी देती है। 20 अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक प्रदेश की ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति का विस्तार से विश्लेषण करती है। संप्रति झारखंड में वर्तमान में हुए विकास और परिवर्तन की तर्कपूर्ण एवं रोचक प्रस्तुति इसे विशिष्ट बनाती है।
इस पुस्तक में ज्ञानवर्द्धक तथ्यों के साथ-साथ एक विचारपरक व्याख्या भी प्रस्तुत है, जिससे यह पुस्तक न केवल प्रतिभागियों की दृष्टि से अपितु शोधकों, अध्यापकों और पाठकों के झारखंड दिग्दर्शन हेतु पूर्णतया उपयोगी और पठनीय है।
डॉ. मनीष रंजन वर्ष 2002 बैच के आई.ए.एस. अफसर हैं और वर्तमान में झारखंड सरकार में कार्यरत हैं। उन्होंने झारखंड में विभिन्न जिलों में उपायुक्त-सह-जिला कलेक्टर के रूप में सफलतापूर्वक काम किया है। उन्होंने नेतरहाट विद्यालय, नेतरहाट से स्कूली शिक्षा एवं पटना कॉलेज, पटना तथा हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। IRMA, गुजरात से एम.बी.ए. करने के बाद उन्होंने मैनेजमेंट स्टडीज में पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड, जॉन्स हापकिंस यूनिवर्सिटी, अमेरिका, फ्रैंकफर्ट स्कूल ऑफ फाइनेंस एंड मैनेजमेंट, जर्मनी, इंटरनेशनल ट्रेनिंग सेंटर, तुरीन, इटली एवं कोरिया डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, दक्षिण कोरिया में अध्ययन किया।
प्रोफेशनल कॅरियर में उन्होंने आई.ए.एस. की मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए ‘डायरेक्टर्स गोल्ड मेडल’ प्राप्त किया था। उन्हें लगातार दो वर्ष प्रधानमंत्री ‘मनरेगा उत्कृष्टता पुरस्कार’, राष्ट्रपति से ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार’, एशियन फेडरेशन ऑफ इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटीज, जापान से ‘स्टार राफ्ट पुरस्कार’ और शारीरिक दिव्यांगों के लिए अनुकरणीय कार्य करने के लिए भारत सरकार द्वारा ‘स्पंदन पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। यह उनकी नौवीं पुस्तक है। झारखंड उनकी कर्मस्थली है तो इससे लगाव होना सहज ही है। अध्ययन, अन्वेषण और चिंतन में निरंतर उनकी रुचि है, जो लेखकीय दायित्व के लिए आवश्यक है।