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बिहार राज्य से पृथक् राज्य बने झारखंड के गठन में सुविधा-वितरण असमानताओं का बड़ा हाथ रहा। पृथक् झारखंड की माँग 19वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही होने लगी थी, जबकि उस समय भारत अंग्रेजी शासन के अधीन था। सौ साल तक चला यह आंदोलन पृथक् राज्य के गठन के लिए विश्व में सबसे अधिक अवधि तक चलनेवाला आंदोलन रहा। जनजातीय बहुल झारखंड वैसे तो प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर है, लेकिन शिक्षा के अभाव ने इस क्षेत्र को बहुत समय तक विकास की मुख्यधारा से दूर रखा। अपने अस्तित्व को बचाने और अपने अधिकारों को प्राप्त करने में झारखंड का आंदोलन और भी विशेष हो जाता है। जनजातियों का दमन और शोषण रोकने के लिए झारखंड की भूमिका पर ऐसे अनेक आंदोलन हुए, जो अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही हो रहे थे। इन आंदोलनों में यहाँ की जनजातियों ने क्या कुछ सहा और देखा, इसकी कल्पना करना भी कठिन है। आज झारखंड पृथक् राज्य बनकर विकास के पथ पर अग्रसर है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘झारखंड सामान्य ज्ञान’ में झारखंड की भौगोलिक स्थिति, खनिज-संपदा, राजनीतिक-सामाजिक स्थिति पर सम्यक् जानकारी जुटाई गई, जो पाठकों के लिए अनेक रूपों में उपयोगी सिद्ध होगी।
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अनुक्रम | |
भूमिका — 7 | झारखंड में 34वें राष्ट्रीय खेल — 249 |
1. झारखंड का इतिहास — 15-45 | झारखंड के प्रमुख क्रीड़ास्थल — 253 |
पुराकालीन इतिहास — 15 | झारखंड के खेल विभूति — 255 |
मध्यकालीन इतिहास — 18 | स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स, लॉस एंजेलिस — 257 |
आधुनिक काल — 24 | 8. जमीन संबंधी कानून — 259-292 |
झारखंड के प्रमुख विद्रोह एवं आंदोलन — 29 | छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 — 259 |
झारखंड के ऐतिहासिक घटनाक्रम — 37 | संताल परगना भूधारण (अनुपूरक उपबंध) अधिनियम, 1949 — 279 |
झारखंड में स्वतंत्रता आंदोलन — 41 | अन्य राज्यों के भूमि संबंधी कानून — 292 |
झारखंड राज्य निर्माण के बाद का घटनाक्रम — 45 | 9. 1947 से राज्य में आर्थिक विकास — 295-331 |
विभिन्न शासन व्यवस्थाएँ — 45 | झारखंड : भौगोलिक स्थिति — 295 |
2. झारखंड आंदोलन — 63-90 | झारखंड की जलवायु — 301 |
झारखंड के सदान — 63 | झारखंड की प्रमुख नदियाँ — 304 |
झारखंड में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम — 66 | प्रमुख जलप्रपात, झील और बाँध — 309 |
झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी — 72 | झारखंड में बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ — 312 |
झारखंड के विभूति — 78 | झारखंड की सतही मिट्टी — 315 |
आधुनिक झारखंड का गठन — 83 | खान एवं खनिज — 316 |
झारखंड आंदोलन के संगठन — 90 | परिवहन एवं संचार — 324 |
3. झारखंड की विशिष्ट पहचान — 92-182 | 10. झारखंड की नीति — 333-421 |
सामाजिक संरचनात्मक अवलोकन — 93 | औद्योगिक नीति — 335 |
झारखंड की जनजातियाँ — 95 | विस्थापन एवं पुनर्वास नीति — 359 |
विभिन्न वैवाहिक परंपराएँ — 117 | प्रत्यार्पण एवं पुनर्वास नीति, 2009 — 372 |
प्रमुख पर्व एवं त्योहार — 121 | झारखंड में स्थानीयता नीति — 379 |
झारखंड के प्रमुख मेले — 126 | झारखंड में खाद्य सुरक्षा अधिनियम — 380 |
राजनीतिक स्थिति — 133 | सेवा का अधिकार कानून, 2011 — 383 |
झारखंड का शासन और प्रशासन — 134 | अन्य महत्त्वपूर्ण नीतियाँ — 386 |
मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद् — 138 | भूमि बैंक — 421 |
विधानसभा — 140 | 11. झारखंड का औद्योगिक विकास — 430-436 |
न्यायपालिका — 142 | झारखंड के प्रमुख उद्योग-धंधे — 430 |
महाधिवक्ता — 144 | वृहद् उद्योग — 432 |
लोकायुक्त — 144 | झारखंड में औद्योगिक विकास — 436 |
झारखंड की प्रशासनिक इकाई — 163 | 12. योजनाएँ — 440-459 |
आर्थिक स्थिति — 163 | 13. वन और वन्य जंतु — 460-470 |
पर्यटन में अपार संभावनाएँ — 177 | वन एवं वनों के प्रकार — 460 |
धार्मिक विशिष्टताएँ एवं पहचान — 182 | वन संपदा — 464 |
4. झारखंड का लोक साहित्य — 186-207 | वन प्रबंधन — 466 |
लोक साहित्य — 186 | वन्य जीव-जंतु एवं संरक्षण — 468 |
पारंपरिक कला — 187 | प्रमुख उद्यान एवं अभयारण्य का विवरण — 470 |
लोक संगीत — 191 | 14. पर्यावरण — 474-484 |
झारखंड के लोक नृत्य — 193 | प्रदूषण — 475 |
झारखंड के प्रमुख वाद्य-यंत्र — 201 | जलवायु परिवर्तन — 482 |
झारखंड के दर्शनीय स्थल — 207 | पर्यावरण संरक्षण — 483 |
5. झारखंड का साहित्य व साहित्यकार — 222-230 | 15. आपदा प्रबंधन — 488-493 |
नागपुरी साहित्य — 222 | • झारखंड में विभिन्न आपदाएँ — 489 |
खोरठा साहित्य — 224 | • झारखंड में आपदा प्रबंधन — 493 |
पंचपरगनिया साहित्य — 224 | 16. समसामयिकी — 501-521 |
कुरमाली साहित्य — 225 | • समसामयिक घटनाएँ — 501 |
संथाली साहित्य — 226 | • पुरस्कार व सम्मान — 514 |
उराँव या कुडुख साहित्य — 227 | • झारखंड का आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 — 517 |
मुंडारी साहित्य — 228 | • झारखंड बजट, 2017-18 — 521 |
हो साहित्य — 229 | • विविध तथ्य — 535 |
खडि़या साहित्य — 230 | 17. संप्रति झारखंड — 541-569 |
हिंदी साहित्य एवं साहित्यकार — 230 | 18. झारखंड का सांख्यिकीय उपस्थापन — 560-573 |
6. शिक्षण संस्थान — 235-241 | 19. झारखंड प्रश्नावली — 574-646 |
झारखंड शिक्षा के क्षेत्र में — 235 | परिशिष्ट - 1 — 647-657 |
झारखंड के प्रमुख विश्वविद्यालय — 238 | परिशिष्ट - 2 — 658-660 |
झारखंड के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान — 239 | परिशिष्ट - 3 — 661-665 |
7. झारखंड में खेलकूद — 245-257 | परिशिष्ट - 4 — 666-669 |
भूमिका — 245 | परिशिष्ट - 5 — 670-671 |
झारखंड खेल नीति, 2007 — 246 |
डॉ. मनीष रंजन वर्ष 2002 बैच के आई.ए.एस. अफसर हैं और वर्तमान में झारखंड सरकार में कार्यरत हैं। उन्होंने झारखंड में विभिन्न जिलों में उपायुक्त-सह-जिला कलेक्टर के रूप में सफलतापूर्वक काम किया है। उन्होंने नेतरहाट विद्यालय, नेतरहाट से स्कूली शिक्षा एवं पटना कॉलेज, पटना तथा हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। IRMA, गुजरात से एम.बी.ए. करने के बाद उन्होंने मैनेजमेंट स्टडीज में पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की। उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड, जॉन्स हापकिंस यूनिवर्सिटी, अमेरिका, फ्रैंकफर्ट स्कूल ऑफ फाइनेंस एंड मैनेजमेंट, जर्मनी, इंटरनेशनल ट्रेनिंग सेंटर, तुरीन, इटली एवं कोरिया डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, दक्षिण कोरिया में अध्ययन किया।
प्रोफेशनल कॅरियर में उन्होंने आई.ए.एस. की मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए 'डायरेक्टर्स गोल्ड मेडल' प्राप्त किया था। उन्हें लगातार दो वर्ष प्रधानमंत्री 'मनरेगा उत्कृष्टता पुरस्कार', राष्ट्रपति से 'निर्मल ग्राम पुरस्कार', एशियन फेडरेशन ऑफ इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटीज, जापान से 'स्टार राफ्ट पुरस्कार' और शारीरिक दिव्यांगों के लिए अनुकरणीय कार्य करने के लिए भारत सरकार द्वारा 'स्पंदन पुरस्कार' से भी सम्मानित किया जा चुका है। यह उनकी नौवीं पुस्तक है। झारखंड उनकी कर्मस्थली है, तो इससे लगाव होना सहज ही है। अध्ययन, अन्वेषण और चिंतन में निरंतर उनकी रुचि है, जो लेखकीय दायित्व के लिए आवश्यक है।