₹250
माता और मातृभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताया गया है । वस्तुत: इनसे वियोग सबके लिए दु:खदायी रहा है, चाहे वह उन्नीसवीं सदी का निपट गँवार, फुसलाकर भेजा गया अनपढ़ पतिराम हो या आधुनिक बुद्धिजीवी, जिन्होंने स्वेच्छा से देश-त्याग किया हो ।
पतिराम एक व्यक्ति नहीं, एक वर्ग है, जो बेहतरी की खोज में शोषण, उत्पीड़न का शिकार होता है; जो तत्कालीन युग- सत्य था ।
प्रस्तुत पुस्तक में उस अंचल के जीवन, सामाजिक और तत्कालीन मूल्यों को अभिव्यंजित किया गया है, जहाँ से अधिकांश बँधुआ मजदूर अनजाने में ही दुनिया की विभिन्न कर्मभूमियों में दूसरों की आर्थिक समृद्धि के लिए नियत हुए थे । कुछ लौट आए, ज्यादा वही हैं, जो नहीं लौटे ।
जन्म : 24 मार्च, 1943 बिहार के बक्सर जिलांतर्गत रहथुआ ग्राम में।
शिक्षा : एम.ए., एल-एल.बी. (कलकत्ता विश्वविद्यालय)।
कृतियाँ : ‘पच्छिम के झरोखे’ (यात्रा वृत्तांत), ‘जो नहीं लौटे’, ‘बाबा की धरती’ तथा ‘गंगा के पार-आर’ (उपन्यास), ‘जाहि राम पद नेह’ (रामायण पर आधारित)।
यात्राएँ : रूस, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड आदि।
एक कर्मठ व्यक्तित्व, एक अरसे तक बक्सर में वकालत तथा लंदन में अवकाश प्राप्त।