Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Jo Sahata Hai Wahi Rahata Hai

₹250

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Acharya Mahapragya
Features
  • ISBN : 9789350480441
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 2011
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Acharya Mahapragya
  • 9789350480441
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2011
  • 2011
  • 200
  • Hard Cover
  • 400 Grams

Description

विचार के मैल दूर करने, विचार को निर्मल बनाने का एक ही उपाय है कि निर्विचार की आग में विचार को डाल दिया जाए, वह अपने आप निर्मल हो जाएगा। विचार के सारे मैल साफ हो जाने के बाद उसमें से सृजनात्मकता, विधायकता, ज्योति और आस्था निकलेगी।
किसी के कहने से कोई चोर नहीं बनता और किसी के कहने से कोई साधु नहीं बनता। आत्मा स्वयं को जानती है कि मैं चोर हूँ या साहूकार हूँ।
ग्रंथ या पंथ का धर्म बड़ा नहीं होता। धर्म वह बड़ा होता है, जो हमारे जीवन के व्यवहार में उपलब्ध होता है।
आधुनिक अर्थशास्‍‍त्र ने आसक्‍ति की चेतना को बहुत उभारा है। उससे भूख की समस्या का समाधान तो हुआ है, किंतु आर्थिक अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। अमीरों की अमीरी बढ़ी है, लेकिन उसी अनुपात में गरीबों को उतनी सुविधाएँ नहीं मिली हैं।
केवल अतीत के सुनहरे सपने दिखानेवाला धर्म चिरजीवी नहीं रह सकता। वही धर्म स्थायी आकर्षण पैदा कर सकता है, जो वर्तमान की समस्या को सुलझाता है।
—इसी पुस्तक से
विश्‍वप्रसिद्ध धर्मगुरु आचार्यश्री महाप्रज्ञ के विशद ज्ञान के कुछ रत्‍नदीप इस पुस्तक में सँजोए हैं, जो हमारे जीवन-पथ को आलोकित करेंगे।
आचार्य महाप्रज्ञ ने हर एक विषय पर अपनी लेखनी चलाई, विविध विषयों को प्रवचन का आधार बनाया। दस वर्ष की अवस्था में संसार को त्यागनेवाले एक धर्मगुरु सामाजिक, आर्थिक और व्यक्‍तिगत स्तर पर आनेवाली समस्याओं का स्टीक समाधान प्रस्तुत करें तो यह महान् आश्‍चर्य है। यह काम आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने अपनी प्रज्ञा जागरण से किया। लोगों के मानस में यह विश्‍वास जमा हुआ था कि जिस समस्या का समाधान अन्यत्र न मिले, वह समाधान आचार्यश्री महाप्रज्ञ के पास अवश्य मिल जाएगा। बड़े-बड़े चिंतक, दार्शनिक, धर्मगुरु एवं राजनीतिज्ञ सब इस आशा से उनके पास आते थे कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ एक ऐसे शख्स हैं, महापुरुष हैं, जो संपूर्ण विश्‍व का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ की प्रस्तुत पुस्तक ‘जो सहता है, वही रहता है’ युवा पीढ़ी को नई दिशा देनेवाले सूत्रों को सँजोए हुए है। ये सूत्र युवाओं के जीवन-निर्माण में चामत्कारिक ढंग से कार्य करेंगे, जिससे युवा जोश के साथ होश को कायम रख सकेंगे और अपने सोचने के तरीके को सम्यक् बना सकेंगे।

The Author

Acharya Mahapragya

आचार्य महाप्रज्ञ विश्‍व भर के जैन धर्म के चिंतकों में अग्रणी स्थान रखते हैं और जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ के दसवें आचार्य हैं। सन् 1920 में राजस्थान के एक गाँव में जनमे आचार्य महाप्रज्ञ दस वर्ष की आयु में भिक्षु बन गए। उनकी शिक्षा-दीक्षा आचार्य श्री तुलसी के मार्गदर्शन में संपन्न हुई, जिन्होंने सन् 1949 में विश्‍व में अहिंसा, घृणा और पृथक्‍ता के भाव से मुक्‍त धर्म के प्रचार के लिए अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। आचार्य महाप्रज्ञ का व्यक्‍तित्व बहुआयामी है और वे भारतीय तथा पश्‍च‌िमी धर्म व दर्शन के सुविख्यात अध्येता हैं। अनेक पुस्तकों के लेखक आचार्यश्री को ‘आधुनिक विवेकानंद’ भी कहा जाता है। अहिंसा का संदेश फैलाने के लिए वे पैदल ही 1 लाख किलोमीटर और 10 हजार गाँवों का भ्रमण कर चुके हैं। इसी उद‍्देश्य से उन्होंने वर्ष 2001 में ‘अहिंसा यात्रा’ प्रारंभ की। सांप्रदायिक सौहार्द के लिए किए गए कार्यों में उनके विशिष्‍ट योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2004 में ‘कम्यूनल हार्मोनी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW