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संसार में उन्हीं मनुष्यों का जन्म धन्य है, जो परोपकार और सेवा के लिए अपने जीवन का कुछ भाग अथवा संपूर्ण जीवन समर्पित कर पाते हैं। विश्व इतिहास का निर्माण करने में ऐसे ही सत्पुरुषों का विशेष योगदान रहा है। संसार के सभी देशों में सेवाभावी लोग हुए हैं; लेकिन भारतवर्ष की अपनी विशेषता रही है, जिसके कारण वह अपने दीर्घकाल के इतिहास को जीवित रख पाया है। किसी ने समय दिया, किसी ने जवानी दी, किसी ने धन और वैभव छोड़ा, किसी ने कारावास की असह्य पीड़ा सही। भारतवर्ष की धरती धन्य है और धन्य हैं वे सत्पुरुष, जिन्होंने राष्ट्रोत्थान को अपना जीवन-धर्म व लक्ष्य बनाया और अनवरत राष्ट्रकार्य में लीन रहे। उन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत को जीवंत रखा और सशक्त-समर्थ भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए अपने जीवन को होम कर दिया। ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ को जीवन का मूलमंत्र माननेवाले ऐसे ही तपस्वी मनीषियों का पुण्य-स्मरण किया है स्वयं राष्ट्रसाधक श्री नरेंद्र मोदी ने इस पुष्पांजलि ज्योतिपुंज में।
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अनुक्रम
ज्योतिपुंज — Pgs. 9
अनुवादकीय — Pgs. 11
भूमिका — Pgs. 15
पत्रं-पुष्पम् — Pgs. 25
1. विवेकानंदजी को डॉक्टरजी की जीवनांजलि — Pgs. 29
2. पूजनीय श्रीगुरुजी माधवराव सदाशिवराव गोळवलकर — Pgs. 43
3. पारदर्शी पारस : पप्पाजी डॉ. प्राणलाल दोशी — Pgs. 91
4. युगऋषि : शतायु शास्त्रीजी — Pgs. 103
5. संघयोगी वकील साहब लक्ष्मणराव इनामदार — Pgs. 127
6. मधुरं मधुकर : मधुकरराव भागवत — Pgs. 153
7. कार्यनिष्ठ : अनंतराव काळे — Pgs. 161
8. गतिशील व्यक्तित्व : केशवराव देशमुख — Pgs. 179
9. मध्याह्ने सूर्यास्त : वसंतभाई गजेंद्रगडकर — Pgs. 191
10. सेवाव्रती : डॉ. विश्वनाथराव वणीकर — Pgs. 205
11. कर्मठ कर्मयोगी : काशीनाथराव बागवडे — Pgs. 213
12. संघर्षमय जीवन : नाथाभाई झगड़ा — Pgs. 221
13. बहुमुखी प्रतिभा : बाबूभाई ओझा — Pgs. 231
14. गंगाघाट : बचुभाई भगत — Pgs. 239
15. विनोदी व्यक्तित्व : वासुदेवराव तळवलकर — Pgs. 247
16. बिना पतझड़ का वसंत : वसंतराव चिपळूणकर — Pgs. 255
गुजरात के मेहसाना जिले के वडनगर में जनमे श्री मोदी राजनीतिशास्त्र में एम.ए. हैं। स्वयंसेवक के रूप में संघ संस्कार एवं संगठन वृत्ति के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए1999 में वे भाजपा के अखिल भारतीय महामंत्री बने। सोमनाथ-अयोध्या रथयात्रा हो या कन्याकुमारी से कश्मीर की एकता यात्रा, उनकी संगठन शक्ति के उच्च कोटि के उदाहरण हैं। गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन हो या आपातकाल के विरुद्ध भूमिगत संघर्ष, प्रश्न सामाजिक न्याय का हो या किसानों के अधिकार का, उनका संघर्षशील व्यक्तित्व सदैव आगे रहा है।
ज्ञान-विज्ञान के नए-नए विषयों को जानना उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। उन्होंने जीवन-विकास में परिभ्रमण को महत्त्वपूर्ण मानते हुए विश्व के अनेक देशों का भ्रमण कर बहुत कुछ ज्ञानार्जन किया है।
अक्तूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पद सँभालने के बाद उन्होंने प्रांत के चहुँमुखी विकास हेतु अनेक योजनाएँ प्रारंभ कीं—समरस ग्राम योजना, विद्या भारती, कन्या केलवानी योजना, आदि। स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत ‘चरैवेति-चरैवेति’ पर अमल करते हुए निरंतर विकास कार्यों में जुटे श्री मोदी को बीबीसी तथा बिजनेस स्टैंडर्ड ने ‘गुजरात का इक्कीसवीं सदी का पुरुष’ बताया है।
आज भारत में ‘सुशासन’ की गहन चर्चा हो रही है। मुख्यमंत्री के रूप में कम समय में ही श्रेष्ठ प्रशासक और सुशासक के रूप में भारत की प्रथम पंक्ति के नेताओं में उनका नाम लिया जाता है।