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आकृति द्वारा भूत, भविष्य एवं वर्तमान कथन की परंपरा भारत की सर्वाधिक प्राच्य परंपराओं एवं चमत्कारी विद्याओं में से एक है । मनुष्य जैसे स्वभाव और चरित्र का होता है, उसकी आकृति भी वैसी ही होती है । इसलिए विद्वानों ने कहा-' मनुष्य का चेहरा उसके मस्तिष्क का दर्पण होता है । ' विद्वान् लेखक ने अपने वर्षों के निरंतर शोध व परीक्षण से पाया कि जन्म-लग्न में जिन-जिन ग्रहों का जो प्रभाव होता है, वह व्यक्ति के चेहरे पर स्वत : ही मुखरित हो जाता है । आकृति विज्ञान व ललाट-रेखाओं पर कोई प्रामाणिक पुस्तक कहीं दिखलाई नहीं देती । यशस्वी लेखक डॉ. भोजराज द्विवेदी का यह प्रथम प्रयास है कि उन्होंने शास्त्रीय आधार व श्लोकों को उद्धृत करते हुए इस विषय में भारतीय पक्ष को उजागर करने की चेष्टा की है । साथ ही विदेशी- विद्वानों के दृष्टिकोण को भी स्पष्ट किया है । चित्रात्मक एवं व्यावहारिक ज्ञान से परिपूर्ण यह पुस्तक आपको मनुष्य के भीतर छिपे हुए उसके चरित्र व गढ़ रहस्यों को प्रकट करने में एक दर्पण का कार्य करेगी ।
दैवज्ञ शिरोमणि पं. भोजराज द्विवेदी ज्योतिष, तंत्र-मंत्र व अध्यात्म विद्या के जाने माने लेखक लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार व भविष्यवक्ता हैं । एम.ए. संस्कृत दर्शन प्रथम श्रेणी में रहकर सर्वोच्च अंक लिये तथा संप्रति जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में ही वराहमिहिर ज्योतिष को लेकर शोधकार्य कर रहे हैं । ज्योतिष विषय को लेकर ' अज्ञात-दर्शन ' नामक एक समाचार-पत्र का संपादन गत सत्रह वर्षों से कर रहे हैं । ज्योतिष में आपको ढेरों मानपत्र, अनेक स्वर्णपदक प्राप्त हो चुके हैं तथा कई नागरिक अभिनंदन हो चुके हैं । आपको पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह द्वारा अंग वस्त्र, मुकुट एवं स्वर्णपदक प्रदान किया गया । आप देश-विदेशों के अनेक राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की अध्यक्षता भी कर चुके हैं तथा सिंगापुर, हांगकांग, अबधापी, दुबई, शारजाह एवं अनेक मुसलिम राष्ट्रों की भी यात्रा कर चुके हैं । ज्योतिष विषय को लेकर पचास से अधिक रेडियोवार्त्ता, एक हजार लेख व डेढ़ हजार से अधिक भविष्यवाणियाँ प्रकाशित होकर सत्य प्रमाणित हो चुकी हैं । ज्योतिष- क्षेत्र में आपने दर्जनों स्तरीय पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से एक यह दुर्लभ पुस्तक आपके हाथों में है ।