और तभी इस कारवाँ के मुखिया ने अपना चाबुक उनकी पीठ पर चलाया। अधूरे आनंद से अभिभूत अपना सिर उठाया तो सामने अरबी को खड़ा पाया। अपने नथुने पर चाबुक का प्रहार पड़ते ही वे पीछे की ओर भाग खड़े हुए। ऊँट का मृत शरीर कई जगहों पर खोल दिया था तथा उससे खून बह रहा था। लेकिन सियार बहुत देर तक वहाँ जाने से स्वयं को रोक नहीं सके, और एक बार फिर वे वहाँ पहुँच गए। एक बार फिर मुखिया ने अपना चाबुक उठाया, लेकिन इस बार मैंने उसका हाथ रोक दिया।
इस धरती पर हर जगह, यहाँ तक कि अब मैंने स्वयं को स्वतंत्र कर लिया था, अब तब भी जब ज्यादा कुछ आशा करने को था नहीं। किस प्रकार उन्होंने इस आदत को छोड़ने, अपनी हार मानने से मना कर दिया, बल्कि बहुत दूर से भी हमारे ऊपर नजर लगाए हुए थे और उनके साधन वही थे। वे हमारे सामने ही सारी योजनाएँ बनाते, जहाँ तक नजर जाती देखते, जहाँ हमारा लक्ष्य होता वहाँ हमें जाने से रोकते हैं, बल्कि अपने निकट ही हमारे ठहरने की व्यवस्था करते हैं और अंततः जब हम उनके व्यवहार का विरोध करते हैं तो वे सहज ही उसे स्वीकार करते हैं।
—इसी संग्रह से
प्रसिद्ध कथाकार काफ्का की रोचक-पठनीय-लोकप्रिय कहानियों का संकलन।
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अनुक्रम
1. नया वकील — Pgs. 7
2. संकल्प — Pgs. 9
3. व्यापारी — Pgs. 11
4. उदासी — Pgs. 14
5. एक छोटी महिला — Pgs. 21
6. पुरानी पांडुलिपि — Pgs. 31
7. सियार और अरबी — Pgs. 35
8. खान का भ्रमण — Pgs. 41
9. ग्यारह बेटे — Pgs. 45
10. स्वप्न — Pgs. 52
11. भ्रातृ हत्या — Pgs. 56
12. आत्मविश्वासी धोखेबाज की बेनकाबी — Pgs. 59
13. ग्रामीण डॉक्टर — Pgs. 62
14. सम्राट् का संदेश — Pgs. 72
15. गायक जोसफिन या मूषक लोक — Pgs. 74
16. निर्णय — Pgs. 101
17. डोलची सवार — Pgs. 119
18. प्रथम दुःख — Pgs. 123
19. पर्वतों की सैर — Pgs. 128
20. अविवाहित का दुर्भाग्य — Pgs. 129
21. अकादमी की रिपोर्ट — Pgs. 130
22. अस्वीकृति — Pgs. 145
23. कानून के सामने — Pgs. 147
24. पारिवारिक व्यक्ति की चिंताएँ — Pgs. 150
फ्रैंज काफ्का का जन्म 3 जुलाई, 1883 को प्राग, बोहेमिया में एक जर्मन यहूदी परिवार में हुआ था। वे बीसवीं सदी के सांस्कृतिक दृष्टि से प्रभावी लघु कहानियों और उपन्यासों के लेखक थे। उनकी रचनाएँ आधुनिक समाज के व्यग्र अलगाव को चित्रित करती हैं। काफ्का 20वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं। काफ्का की बहु-प्रचलित रचनाओं में से कुछ हैं—‘कायापलट’, ‘जाँच’, ‘एक भूखा कलाकार’, ‘महल’ आदि।
स्मृतिशेष : 3 जून, 1924।