₹250
दिल्ली मेट्रो एक ऐसी परियोजना है, जिसने दिल्ली और दिल्लीवालों की दैनिक जिंदगी को बदल दिया है। इसने दिल्ली को वॉलसिटी से वर्ल्ड सिटी बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेट्रो के चलने से दिल्लीवाले परिवार के दूसरे सदस्यों से ही नहीं, दोस्तों और परिचितों से ज्यादा मिल-जुल पाते हैं। अब दिलशाद गार्डन में रहनेवाले परिवार इंडिया गेट पर आइसक्रीम खाने आते हैं। नई दिल्ली के सरकारी भवनों में काम करनेवाले चाट खाने और शॉपिंग करने के लिए लंच में चाँदनी चौक जाते हैं। द्वारका, रोहिणी, नोएडा और गाजियाबाद भी अब उतने दूर नहीं रह गए हैं।
मेट्रो रेल में वी.आई.पी. और आम आदमी के बीच कोई अंतर नहीं रह जाता। दुकान बढ़ाने के बाद लालाजी और उनकी दुकान पर काम करनेवाला ‘लड़का’ मेट्रो में साथ-साथ यात्रा करते हैं।
इस परियोजना ने देश और दिल्ली में निर्माण और तकनीक में नई ऊँचाइयाँ हासिल की हैं। इससे यह भी साबित हुआ है कि इच्छा हो तो कंपनी सरकारी हो या गैर-सरकारी, निर्धारित समय से पहले और अनुमानित लागत पर भी योजनाएँ पूरी की जा सकती हैं।
इस परियोजना के चलते सैकड़ों वर्षों में बने और बसे इस महानगर के विभिन्न शहरों के बीच मिनटों में यात्रा की जा सकती है। लेखक ने मेट्रो रेल के माध्यम से इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के आगमन, विकास और उसके शहर पर पड़ रहे प्रभावों को देखने का, आकलन करने का प्रयास किया है। पुस्तक की भाषा-शैली कुछ ऐसी है कि बस आप मेट्रो से उसकी और दिल्ली की कहानी भी सुनते चले जाएँगे।
तो आइए, जानते हैं कैसे आई मेट्रो—दुनिया में, देश में और दिल्ली में। फिर चलते हैं मेट्रो के साथ दिल्ली देखने।
13 सितंबर, 1954 को भागलपुर (बिहार) में जन्म। कानपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया। मार्च 1977 में राष्ट्रीय संवाद समिति समाचार के माध्यम से पत्रकारिता से जुड़े। दिल्ली के पर्यावरण पर उनकी पहली पुस्तक ‘काली धूप’ प्रकाशित। आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए जन-जागृति और जनरुचि से संदर्भित पटकथाओं और वृत्तकथाओं का लेखन। प्रौढ़ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए ‘कानून और हम’, ‘वोट का अधिकार’, ‘मास्टर प्लान और दिल्ली के गरीब’ जैसी पुस्तिकाएँ खासी उपयोगी रहीं। ‘दिल्ली क्रांति के 150 वर्ष’, ‘भारत की परमाणु यात्रा’, ‘कहानी दिल्ली मेट्रो की’ इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। ‘दास्तान-ए-दिल्ली’ तथा ‘लाल-किले की प्राचीर से’ दो खंडों में संपादित पुस्तक है; इसमें श्री अवस्थी ने यह बताने का प्रयास किया कि आजादी के साठ वर्षों में हमने क्या खोया और क्या पाया।
1997 में सिनेमा पर सर्वश्रेष्ठ लेखन के लिए राष्ट्रपति के.आर. नारायणन द्वारा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार ‘स्वर्ण कमल’ से सम्मानित। ‘सर्वश्रेष्ठ पत्रकार पुरस्कार’ मिला। संप्रति महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, रोहिणी के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के कार्यकारी निदेशक हैं।