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"विषय युद्ध था और अंकल शेखर, नई दिल्ली के समाचार मुख्यालय में श्रद्धेय शेखरजी, उत्तेजना से भर गए थे।
वह उन अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के कारण नहीं था जो उन्हें आगे जाकर मिलने वाले थे कि वे कोरिया और वियतनाम के युद्धक्षेत्रों से गरमागरम खबरें सुनाते हुए युद्ध रिपोर्टिंग में एक किंवदंती बन गए थे। युद्ध की रिपोर्टिंग उनके लिए एक उत्तेजना थी, बल्कि एक बहुत गंभीर बात थी; एक बहिर्मुखी द्वारा जीवन का सिंहावलोकन ।
यद्यपि वे पेशेवर सेवानिवृत्ति स्वीकार कर चुके होने का दावा करते थे, बी.बी.सी. और सी.एन.एन. के बीच उनसे इराक युद्ध को कवर करवाने के लिए प्रतिस्पर्धा चल रही थी, जिसने एक समाचार-पत्र को उनका वर्णन इस प्रकार करने के लिए प्रेरित किया, ""वॉर हॉर्सेज (अनुभवी लड़ाके) कभी नहीं मरते, वे बस अपने आप ही मिट जाते हैं।"" अंकल शेखर एक वॉर हॉर्स थे और अब भी हैं।
""हत्या करने की इच्छा कैसे उत्पन्न होती है?"" मैंने कई युद्धों के अनुभवी गवाह शेखरजी की ओर एक पहेली उछाली।
हमने शेखरजी की ब्रीफिंग के पीछे छिपी कुछ अब तक न सुनी गई घटना के लिए अपने कान तैयार कर लिये।"