₹300
हे प्रभु! मुझे उस सामने टेबल पर बैठे धन्ना सेठ के मोटू बेटे की प्लेट में भी मत रखना। कब से अपनी ललचाई नजरों से इधर ही देखे चला जा रहा है। डॉक्टर ने उसे ज्यादा घी-तेल खाने से मना किया है। पहले तो संयम की बातें करेगा, पर फिर चार-पाँच खा ही जाएगा। खाएगा नहीं, मुँह में ठूँसेगा। डकार-पर-डकार लेगा। फिर मेरी क्वालिटी को कोसेगा और सोचने लगेगा कि अब और क्या खाया जाए? हे प्रभु! दुकान के बाहर दिहाड़ी मजदूर खड़ा है। वह अब तक दो-तीन बार मेरी कीमत पूछ चुका है। वह भूखा है। वह मुझे खाना चाहता है, पर पाँच रुपए मुझ पर खर्च करना उसे खल रहा है। फिर भी वह आएगा। भूख से हारकर ही आएगा। वह मुझे देखेगा-परखेगा। तब एक खरीदेगा। भले ही इस खर्च की भरपाई करने के लिए उसे बस के बदले छह मील पैदल चलकर घर लौटना पड़े।
प्रसिद्ध कपड़ा व्यवसायी हनुमान प्रसाद तुलस्यान की पौत्री तथा उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध लॉटरी व्यवसायी (लॉटरी सम्राट्) श्री बद्रीप्रसाद गोयल की पुत्रवधु।
कृतित्व : कविता, कहानियाँ, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्तांत तथा लेख दैनिक जागरण, अमर उजाला, आई नेक्ट, सरिता, रूपायन, हैलो कानपुर जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, अन्य साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा रेडियो से प्रसारित।
सन् 1998 से आर्किटेक्चर फर्म कर्वे गुंजाल ऐंड एसोसिएटेड के साथ एक इंटीरियर डिजायनर की हैसियत से कार्यरत। सन् 1997 में पति राकेश गोयल के साथ मिलकर कादंबरी ज्वैलर्स की स्थापना की। सेवा संस्थान काकादेव कानपुर की फाउंडर ट्रस्टी, डायरेक्टर और सिलाई केंद्र संचालिका तथा लॉयन क्लब आदर्श की मेंबर, अर्पिता महिला मंडल में कार्यकारिणी सदस्य। दुर्गाप्रसाद दुबे पुरस्कार कमेटी की सदस्या, लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी की संस्थापक सदस्या। उ.प्र. के राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत; साहित्य वाचस्पति सम्मान तथा दैनिक जागरण, कानपुर में लोकपाल की पदवी से सम्मानित।
संप्रति : पति राकेश गोयल के साथ ज्वैलरी व्यापार में संलग्न।