₹200
“मम्मी! तुम तो कह रही थीं, भइया खरीदोगी?”
“हाँ, कहा तो था!” जवा ने सिटपिटाकर कहा।
“फिर?”
“वो ऐसा हुआ कि लड़के सारे बहुत काले-काले थे। लड़कियों के स्टॉक में यह बहुत सुंदर सी दिखी तो हमने लपककर तुम्हारे लिए छाँट लिया। देखो तो! इसकी आँखें नीली हैं!”
“सच मम्मी! यह तो बहुत सुंदर है!”
नई बहन की सुंदरता देखकर गोल-मटोल चेहरा संतुष्ट हुआ। जवा ने चैन की साँस ली। बेटी पंद्रह दिन की हो गई थी।
छोटी रानी की नीली आँखों में झाँकती उसे गोद में डुलाती जवा एक दिन गुनगुना उठी—
“हरा समंदर गोपी चंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी?”
“इतना पानी!”
बड़ी बिटिया हाथ फैलाकर पानी की मात्रा बताती हँस रही थी।
—इसी पुस्तक से
प्रस्तुत उपन्यास में एक स्त्री के नि:स्वार्थ प्रेम, वात्सल्य, त्याग, सेवा और समर्पण जैसे गुणों को चित्रित किया गया है, इसमें स्त्री-मन की उथल-पुथल और मनोभावों की सशक्त अभिव्यक्ति है। स्त्री-जीवन के समग्र पक्ष को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता उत्कृष्ट सामाजिक उपन्यास।
जन्म : दिसंबर 1953 में इलाहाबाद में।
शिक्षा : जीव-रसायन में स्नातकोत्तर तथा सूक्ष्म जैविकी में पी-एच.डी.।
प्रकाशन : उपन्यासद्वय ‘ठहरी हुई नाव’/ ‘सतरंगा मोरपाखी’ प्रकाशित; बच्चों के लिए लघुकथाओं का लेखन।
स्मृतिशेष : सितंबर 2004 में।