₹150
बचपन और अभिभावकता एक सिक्के के दो पहलू हैं, एक-दूसरे के पूरक हैं । जिस प्रकार श्रेष्ठ और आदर्श अभिभावकता के बिना बच्चों के सुखद व उज्ज्वल भविष्य की नींव नहीं डाली जा सकती उसी प्रकार बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने व उनके उज्ज्वल भविष्य की चिंता किए बिना अभिभावता की सार्थकता नहीं । बच्चों के बहुमुखी विकास व उत्थान के लिए अभिभावकों को प्रेम और व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता है, जिनसे उनके नन्हे भविष्य को अपना व्यक्तित्व निखारने में सहायता मिलती है । सही अभिभावकता के लिए समय का उचित प्रयोग और निरंतर प्रयास नितांत आवश्यक है । माता-पिता के सुखद व सामंजस्यपूर्ण व्यवहार और आचार-विचार से बच्चों में अनोखे व्यक्तित्व का विकास होता है ।
इस पुस्तक में अभिभावकों, छात्र- छात्राओं की समस्या, मार्गदर्शन, शिक्षकों की अहम भूमिका तथा पारिवारिक वातावरण से संबंधित अनुभवों का रोचक वर्णन है । इसमें नकारात्मक स्वभाव, अपने साथी से ईर्ष्या एवं द्वेष- भावना और अनुशासनहीनता आदि बच्चों के स्वाभाविक विकारों को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए तथा साथ ही किस अनावश्यक नियंत्रण का त्याग करना चाहिए-इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है ।
यह पुस्तक युवा अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ पुस्तक सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है ।
डॉ. श्यामा चोना देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में अग्रगण्य दिल्ली पब्लिक स्कूल, आर.के. पुरम की प्राचार्या हैं । उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने का चालीस वर्षों का व्यापक अनुभव है । उन्होंने तीन वर्ष से लेकर अठारह वर्ष तक के बच्चों के बीच संवाद स्थापित कर उन्हें संस्कारित करने एवं आदर्श नागरिक बनाने का महनीय कार्य किया है ।
डॉ. श्यामा चोना को शिक्षा तथा विकलांगों के उन्नयन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सन् 1999 में प्रतिष्ठित ' पद्मश्री सम्मान ' से सम्मानित किया जा चुका है । इसके अलावा उन्हें लगभग पचास अन्य सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें दो राष्ट्रीय स्तर के एवं एक राज्य स्तर का है । वे बच्चों के भविष्य से संबंधित मुद्दों पर ' हिंदुस्तान टाइम्स ' में स्तंभकार के रूप में नियमित लेख लिख रही हैं ।