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कहानी सबसे प्राचीन कला है। जब दर्शन, विज्ञान, इतिहास नहीं थे, तब भी कहानियाँ थीं। यह इतिहास की जननी है। यह वह दृष्टि है, जो परतों के भीतर झाँक लेती है। कल्पना एवं अनुभव को प्रकट करने की आकांक्षा का प्रतिफल है कहानी। यह अंतर्मन के अनुभवों व भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है। दार्शनिक तथा मनोवैज्ञानिक सिद्धांत कथाओं में ही मानवीय तरलता पाते हैं। रचनाएँ सूक्ष्म प्रक्रिया से गुजरती हैं, लगातार अपने भीतर उतरते जाना होता है, यह अनुभूति का क्षेत्र है। यह न अपने में समाधान है और न अध्यात्म। यह मन के भीतर चल रहे द्वंद्व से साक्षात्कार है। मन की दुनिया बड़ी निराली है।
रचने का काम उगाने जैसा भी है। प्रत्येक कहानी लिखने से पहले किसान की तरह खेत की पूरी मिट्टी को कोड़ना पड़ता है। चेतना की गहराइयों में कोई बीज भूमि तोड़कर प्रकाश-दर्शन का मार्ग खोज रहा हो। रचना का सीधा संबंध जीवन से है। जो जीवन में है, वही साहित्य रचना में है। कहानी में एक पूरी जिंदगी आ जाती है।
प्रसिद्ध कथाकार मृदुला बिहारी अपनी कहानियों में दार्शनिकता, मानवता तथा समाज के विविध पक्षों को बहुत सूक्ष्मता से उकेरती हैं। मानवीय संबंधों के महीन ताने-बाने का बोध कराती पठनीय कहानियाँ।
1 फरवरी, 1949 को जनमी मृदुला बिहारी की शिक्षा राँची, भागलपुर एवं पटना में हुई। कथा, उपन्यास व नाटकों की 15 चर्चित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये नारी मन के आंतरिक मन को छूने और पकड़ने की विशेष क्षमता रखती हैं। इनकी रचनाएँ जिंदगी की निरंतर साथी हैं।
रंगमंच, रेडियो, एन.एफ.डी.सी. तथा दूरदर्शन के लिए लगभग 50 नाटक, टेलीफिल्म एवं फीचर फिल्म लिखीं। इनके द्वारा लिखा टी.वी. धारावाहिक ‘भोर’ को सन् 2002 में अखिल भारतीय दूरदर्शन प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ धारावाहिक के रूप में सम्मानित किया गया। राजस्थान का सर्वोच्च साहित्य सम्मान ‘मीरा पुरस्कार’, झारखंड का ‘राधाकृष्ण पुरस्कार’, बिहार का ‘नई धारा रचना सम्मान’ के साथ अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से अलंकृत।
इनकी अनेक रचनाओं का अंग्रेजी, उर्दू, तेलुगु, गुजराती आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है। सन् 2010 में इन्होंने चीन में आयोजित ‘बीजिंग इंटरनेशनल बुक फेयर’ में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली की ओर से भारत का प्रतिनिधित्व किया।
इन दिनों इनका समय भारत और अमेरिका के बीच गुजरता है।
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