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शैतान का दावा है कि उसका रास्ता ही सर्वोपरि कल्याणकारी है। उसका कहना है कि जो जितना ही ईश्वर-भक्त है (सत्य, ज्ञान, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने वाला), वह उतना ही दुखी, पीडि़त, त्रस्त और दरिद्र है; लेकिन जो जितना ही उसके रास्ते पर चलनेवाला है, वह उतना ही सुखी और समृद्ध! और अब, जबकि हर व्यक्ति सुख-समृद्धि के लिए पगलाया घूम रहा है, क्या हमें शैतान की राह पर ही चलना होगा?
सुप्रसिद्ध लेखक-चित्रकार आबिद सुरती की यह बहुचर्चित व्यंग्य कृति, जिसे उसने शैतान की रचना कहा है, बहुत ही अनूठे तरीके से हमारी आज की दुनिया पर शैतानी गिरफ्त का प्रमाण पेश करती है। इससे गुजरते हुए हम न सिर्फ मानव-सभ्यता के पुराकालीन जीवनादर्शों के छद्म को उजागर होता हुआ देखते हैं, बल्कि अपने नग्न और मूल्यहीन वर्तमान को भी आश्चर्यकारक ढंग से पहचान जाते हैं। वस्तुत : यह किताब काली ही इसलिए है कि इसका हर पन्ना हमारी परंपरागत दृष्टि को अपनी उज्ज्वल चमक से चौंधियाने की ताकत रखता है। (प्रथम संस्करण से)
आबिद सुरती
जन्म : 1935 राजुला (गुजरात)।
शिक्षा : एस.एस.सी., जी.डी. आर्ट्स (ललित कला)।
प्रकाशन : अब तक अस्सी पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें पचास उपन्यास, दस कहानी संकलन, सात नाटक, पच्चीस बच्चों की पुस्तकें, एक यात्रा-वृत्तांत, दो कविता संकलन, एक संस्मरण और कॉमिक्स। पचास साल से गुजराती तथा हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लेखन। उपन्यासों का कन्नड़, मलयालम, मराठी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली और अंग्रेजी में अनुवाद। ‘ढब्बूजी’ व्यंग्य चित्रपट्टी निरंतर तीस साल तक साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित।
दूरदर्शन, जी तथा अन्य चैनलों के लिए कथा, पटकथा, संवाद लेखन। अब तक देश-विदेशों में सोलह चित्र-प्रदर्शनियाँ आयोजित। फिल्म लेखक संघ, प्रेस क्लब (मुंबई) के सदस्य।
पुरस्कार : कहानी संकलन ‘तीसरी आँख’ को राष्ट्रीय पुरस्कार।
Email : aabidssurti@gmail.com
Web: www.aabidsurti.in
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