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किसी भी देश की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार आदर्श नागरिकता एवं उन्हीं नागरिकों द्वारा चुनी हुई सरकार के सुशासन तथा राष्ट्र हितार्थ में उठे कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर इस पुस्तक में देने का प्रयास है, उदाहरणार्थ—
1. संविधान एवं कानून से अनभिज्ञ देश के 99 प्रतिशत नागरिकों को कानून का ज्ञान कैसे हो?
2. अधिकार प्राप्ति की दिशा में चल रहे टुकड़ों-टुकड़ों में संघर्ष का स्थायी समाधान क्या हो?
3. जनता द्वारा चुनी हुई सरकारों के कामकाज में देश के सभी नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित कैसे हो?
उपर्युक्त प्रश्नों इत्यादि के समाधान हेतु ‘कानून का अधिकार’ नामक देश स्तर पर चलाए जा रहे ऐसे अभियान की रूपरेखा को समझने की आवश्यकता है। जनता द्वारा जनता के लिए एक जन अभियान को यहाँ साहित्य के रूप में विस्तृत विवरण के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस पुस्तक के तीन भाग हैं—प्रथम भाग में जन-अभियान का अर्थ, भावार्थ एवं क्रियात्मक योजनाओं का उल्लेख है। दूसरे और तीसरे भाग में क्रमशः भारत का संविधान एवं भारतीय दंड संहिता का संक्षिप्त स्वरूप है। प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से भारत के पूरे संविधान को आधा घंटा एवं पूरी भारतीय दंड संहिता को पंद्रह मिनट में पढ़ा जा सकता है।
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अनुक्रम
आमुख — Pgs. 3
विचार भूमि — Pgs. 7
खंड-1 : अभियान का विविध आयाम
प्रस्तावना — Pgs. 15
1. कानून का अधिकार : अर्थ, भावार्थ एवं अवधारणा — Pgs. 21
2. कानून का ज्ञान : आदर्श नागरिकता की पहचान — Pgs. 24
3. कानून का अधिकार :एक जन-जागरण का मुद्दा — Pgs. 26
4. कानून का अधिकार : एक मौलिक अधिकार — Pgs. 29
5. कानून का अधिकार : मानवाधिकार एवं स्व-अधिकार का संरक्षण — Pgs. 32
6. कानून का अधिकार : एक वृहद् जन : अभियान का आह्वान — Pgs. 36
7. कानून का अधिकार : सरकार, संगठन, आयाम एवं कानून मित्र — Pgs. 39
8. कानून का अधिकार उद्देश्य और लक्ष्य — Pgs. 42
निष्कर्ष — Pgs. 46
खंड-2 : भारत का संविधान
भारत का संविधान : एक दृष्टि, पूर्व समझ — Pgs. 49
खंड-3 : भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड सहिता : अपराध एवं कानून — Pgs. 83
पुलिस और एफ.आई.आर. — Pgs. 101
डॉ. विजय सोनकर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी जनपद में हुआ।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.बी.ए., पी-एच.डी. (प्रबंध शास्त्र) के साथ ही संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि प्राप्त। बाल्यकाल से ही संघ की शाखाओं में राष्ट्रोत्थान एवं परमवैभव के भाव से परिचित डॉ. शास्त्री की संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा काशी में हुई।
तीन जानलेवा बीमारियों के बाद पूर्णरूपेण स्वस्थ हुए डॉ. शास्त्री ने प्रकृति के संदेश को समझा। हिंदू वैचारिकी और हिंदू संस्कृति को आत्मसात् कर राजनीति में प्रवेश किया और लोकसभा सदस्य बने। सामाजिक न्याय एवं सामाजिक समरसता के पक्षधर डॉ. सोनकर शास्त्री को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया।
देश एवं विदेश की अनेक यात्राएँ कर डॉ. शास्त्री ने हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका को सुनिश्चित किया तथा मानवाधिकार, दलित हिंदू की अग्नि-परीक्षा, हिंदू वैचारिकी एक अनुमोदन, सामाजिक समरसता दर्शन एवं अन्य अनेक पुस्तकों का लेखन किया। विश्वमानव के ‘सर्वोत्तम कल्याण की भारतीय संकल्पना’ को चरितार्थ करने का संकल्प लेकर व्यवस्था के सभी मोरचा पर सतत सक्रिय एवं वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।