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सन् 1994 में बीस साल की गुंजन सक्सेना पायलट कोर्स के लिए चौथे शॉर्ट सर्विस कमिशन (महिलाओं के लिए) की चयन प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मैसूर जानेवाली ट्रेन पर सवार होती है। चौहत्तर सप्ताह की कमरतोड़ ट्रेनिंग के बाद वह डिंडीगुल स्थित एयरफोर्स एकेडमी से पायलट ऑफिसर गुंजन सक्सेना के रूप में पास आउट होती है।
3 मई, 1999 को स्थानीय चरवाहों ने कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर दी। मध्य मई तक घुसपैठियों को खदेड़ने के मकसद से हजारों भारतीय सैनिक पहाड़ पर लड़े जानेवाले युद्ध में शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ का आगाज किया, जिसमें उसके सभी पायलट मोर्चे पर थे। महिला पायलटों को जहाँ अब तक युद्ध क्षेत्र में नहीं उतारा गया था, वहीं उन्हें घायलों के बचाव, रसद गिराने और टोह लेने के लिए भेजा गया।
गुंजन सक्सेना को अपनी क्षमता प्रमाणित करने का यह स्वर्णिम अवसर था। द्रास और बटालिक क्षेत्रों में बेहद जरूरी आपूर्ति को हवा से गिराने और लड़ाई के बीच से घायलों का बचाव करने से लेकर, पूरी सावधानी से दुश्मनों के ठिकानों की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों तक पहुँचाने और एक बार तो अपनी एक उड़ान के दौरान पाकिस्तानी रॉकेट मिसाइल से बाल-बाल बचने तक, सक्सेना ने निर्भीकतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाया, जिससे उन्होंने यह नाम अर्जित किया—कारगिल गर्ल।
महिलाओं की सामर्थ्य, क्षमताओं और अद्भुत जिजीविषा की कहानी है गुंजन सक्सेना की यह प्रेरणाप्रद पुस्त
फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुंजन सक्सेना (रिटायर्ड) युद्ध क्षेत्र में सेवा देनेवाली भारतीय वायुसेना की पहली महिला अधिकारी हैं।
सन् 1994 में उन्होंने सेवा चयन बोर्ड (एस.एस.बी.) के इंटरव्यू में कामयाबी हासिल की और डिंडीगुल स्थित वायुसेना एकेडमी को ज्वॉइन किया। 1999 में जब कारगिल युद्ध छिड़ा तो अग्रिम मोर्चे पर पहली कुछ महिलाओं में शामिल होकर उन्होंने परिस्थितियों को भारत के पक्ष में मोड़ने में अपना योगदान दिया।
किरण निर्वाण वह उपनाम है, जिसका प्रयोग किरणदीप सिंह और निर्वाण सिंह ने किया है।
किरणदीप सिंह मैनेजमेंट स्टडीज में डॉक्टरेट कर रहे हैं।
निर्वाण सिंह केंद्र सरकार में सेवारत एक अधिकारी हैं, जिनकी कला, लेखन और घूमने-फिरने में गहरी दिलचस्पी है।