₹400
‘मैं या तो जीत का भारतीय तिरंगा लहराकर लौटूँगा या उसमें लिपटा हुआ आऊँगा, पर इतना निश्चित है कि मैं आऊँगा जरूर।’
कैप्टन बत्रा ने अपने साथी को यह कहकर किनारे धकेल दिया कि तुम्हें अपने परिवार की देखभाल करनी है और अपने सीने पर गोलियाँ झेल गए। कैप्टन बत्रा 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में अपने देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। बेहद कठिन चुनौतियों और दुर्गम इलाके के बावजूद, विक्रम ने असाधारण व्यक्तिगत वीरता तथा नेतृत्व का परिचय देते हुए पॉइंट 5140 और 4875 पर फिर से कब्जा जमाया। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। विक्रम मात्र 24 वर्ष के थे।
‘कारगिल के परमवीर : कैप्टन विक्रम बत्रा’ में उनके पिताजी जी.एल. बत्रा ने अपने बेटे के जीवन की प्रेरणाप्रद घटनाओं का वर्णन किया है और उनकी यादों को फिर से ताजा किया है। उन्होंने आनेवाली पीढि़यों में जोश भरने और वर्दी धारण करनेवाले पुरुषों के कठोर जीवन का उल्लेख भी किया है।
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अनुक्रम
प्राकथन — Pgs. 7
संदेश — Pgs. 11-16
मेरी बात — Pgs. 17
आभार — Pgs. 19
1. एक योद्धा का जन्म — Pgs. 25
2. कॉलेज के दिन — Pgs. 31
3. मन की पुकार... 36
4. आगे का रास्ता — Pgs. 40
5. पहली पोस्टिंग (तैनाती) — Pgs. 46
6. उपद्रव का समय — Pgs. 53
7. हंप, रॉकी नॉब (Rocky Knob) पर विजय — Pgs. 57
8. ऑपरेशन विजय — Pgs. 61
9. प्वॉइंट 5140 पर कजा — Pgs. 65
10. देश का गौरव, देश का हीरो — Pgs. 71
11. प्वॉइंट 4875 की लड़ाई — Pgs. 75
12. अंतिम लड़ाई — Pgs. 78
13. शहादत — Pgs. 85
14. जीत की कीमत — Pgs. 88
15. देश का नमन — Pgs. 90
16. एक सैनिक की प्रेम कहानी — Pgs. 93
17. युद्ध-विराम — Pgs. 95
18. सर्वोच्च सम्मान — Pgs. 97
19. प्रशस्ति — Pgs. 99
20. स्मृतियों में...
विक्रम : माँ की स्मृतियों में — Pgs. 101
गौरवान्वित पिता की स्मृतियों में — Pgs. 103
भ्रातृ-स्नेह : जन्म-जन्म का बंधन — Pgs. 105
बहन की स्मृतियों में...खिलंदड़ विक्रम — Pgs. 112
भाई, जिसने अपना वादा पूरा किया : एक बहन की श्रद्धांजलि — Pgs. 114
न जाने फिर कब मुलाकात होगी : जानी — Pgs. 116
कारगिल की कहानी : बरखा दा की जुबानी — Pgs. 122
जन-जन का हीरो : देश-दुनिया के शदों में — Pgs. 126
ये दिल माँगे मोर — Pgs. 142
कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रद्धांजलि — Pgs. 144
शेरदिल — Pgs. 147
मेरे मन-मंदिर का देवता — Pgs. 149
संदर्भ-सूची — Pgs. 150
जी.एल. बत्रा
सरगोधा जिले (अब पाकिस्तान में) के एक छोटे से कस्बे मीठा-तिवाना में जनमे जी.एल. बत्रा प्राणिविज्ञान में एम.एस-सी. करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राणिविज्ञान विभाग में रिसर्च फेलो रहे। तदुपरांत सन् 1969 में हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग में सेवारत हो गए, जहाँ से वे सन् 2001 में सेवानिवृत्त हुए। संप्रति विभागीय समिति के सदस्य।
शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट, समर्पित सेवा के लिए उन्हें हिमाचल प्रदेश के एक एन.जी.ओ. द्वारा ‘प्रियदर्शनी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विश्व हिंदू परिषद् द्वारा ‘हिंदू रत्न’ उपाधि से भी उन्हें सम्मानित किया गया है। साथ ही डिजिटल इंडिया यंग जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन, मध्य प्रदेश ने ‘स्पेशल प्राइड अवार्ड’ से भी सम्मानित किया है।
वे अपनी राष्ट्रवादी व आध्यात्मिक सोच के लिए जाने जाते हैं।