प्रस्तुत पुस्तक ‘कर्म ही पूजा है’ में समाहित ज्ञान छोटे बच्चों से लेकर किसी भी आयु वर्ग के लिए उपादेय होगा। पुस्तक के पाठक, शिक्षक का भी कर्तव्य बनता है कि पुस्तक के छिपे ज्ञान के खजाने को बच्चों में पठन के प्रति रुचि उत्पन्न कर उन तक पहुँचाना एक श्रेयस्कर कदम होगा।
इस पुस्तक में प्रकाशित महापुरुषों के जीवन से जुड़ी घटनाएँ बच्चों को आदर्श भावी नागरिक बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस पुस्तक के अनेक प्रसंग जन-जागृति की दिशा में एक अच्छी पहल है यथा—गुरु-शिष्य संबंध, दंड-संत टॉलस्टाय की सरलता-प्रेम सर्वोपरि, शिरडी के साँई बाबा, कर्तव्य-निष्ठा, अनाशिक्त, गांधीजी द्वारा पशु-वध का विरोध, क्रांतिकारियों के आदर्श कृष्ण और जल संरक्षण जाति का ढोल सुख एवं दुःख स्वावलंबन, एकता, सेवा-धर्म, महान् दधीचि का त्याग, गौतमी का आत्मबोध गतिशीलता की प्रधानता जैसी इस पुस्तक की विषयवस्तु ज्ञानामृत की आधारिशला है। सच्चा ज्ञान ही हमारे जीवन का आधार बिंदु है। निसंदेह सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए यह एक प्रेरणादायी पुस्तक है।
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अनुक्रम | ||
संदेश—7 | 88. सत्कर्म करते परमात्मा की शक्ति से जुड़ना श्रेष्ठ है—92 | 177. राष्ट्रभक्त सुभाष—150 |
भूमिका—9 | 89. ईश्वर इच्छा ही सर्वोपरि है—93 | 178. न्यायप्रियता—151 |
1. ज्योति जीवन का पर्याय—23 | 90. गांधीजी द्वारा पशु वध का विरोध—93 | 179. तत्त्व-बोध—151 |
2. बड़ों की आज्ञा का पालन—24 | 91. अहंकार रूपी अंधकार से मुक्ति के लिए अपने भीतर जागरण का दीप जलाएँ—94 | 180. कर्म का प्रतिफल—152 |
3. गुरु-शिष्य संबंध—24 | 92. पुत्र को माँ का आशीर्वाद—95 | 181. लोकमंगल की कामना—153 |
4. चोर ने चोरी छोड़ दी—25 | 93. दास प्रथा से मुक्ति—96 | 182. हाँड़ी के चावल—153 |
5. सत्कर्मों से कल्याण—26 | 94. श्रद्धा का आधार—97 | 183. सदुपयोग—154 |
6. भाषण में शिष्टता—26 | 95. क्रांतिकारियों के आदर्श—97 | 184. सर्वव्यापी ईश्वर—154 |
7. आसक्ति ही बंधन—27 | 96. धर्म की कसौटी—98 | 185. दधीचि का त्याग—155 |
8. करामातों से बचो—28 | 97. स्वाभिमानी माँ—99 | 186. कर्म ही धर्म है—155 |
9. गुरु की शिक्षा—29 | 98. कार्नेगी का समाज-प्रेम—100 | 187. मानव जीवन परमात्मा की प्राप्ति के लिए है—156 |
10. रहस्य—29 | 99. कृष्ण की कृपा और जल-संरक्षण—100 | 188. जैसी दृष्टि होगी, सृष्टि वैसी ही नजर आएगी—157 |
11. विद्या प्राप्ति के लिए त्याग की आवश्यकता—30 | 100. शेख फरीद—101 | 189. जीवन में नामुमकिन कुछ भी नहीं है—158 |
12. कलगी नहीं झुका सकता—30 | 101. जापान के गांधी—102 | 190. प्रशंसा से बचो—159 |
13. नींव का पत्थर—31 | 102. राजधर्म—102 | 191. धन की तीन स्थितियाँ—159 |
14. दंड—31 | 103. समस्या का निदान—103 | 192. नाम अलग-अलग हैं, पर ईश्वर एक है—160 |
15. चिरंतन सत्य—32 | 104. जब भगवान् हुए नीलाम—104 | 193. गौतमी का आत्मबोध—161 |
16. बाबा मस्तराम का त्याग—32 | 105. प्रोत्साहन—104 | 194. समय का सदुपयोग—162 |
17. भारतीय की सहिष्णुता—33 | 106. संत की सलाह—105 | 195. भगवान् शिव—162 |
18. साधु की सद्प्रेरणा—33 | 107. गुरु की ताड़ना—106 | 196. राजा विक्रमादित्य—163 |
19. क्षमा बलवान का आभूषण है—34 | 108. तुलाधार की तीर्थयात्रा—106 | 197. जो जैसा होता है, उसे वैसा ही दिखाई देता है—164 |
20. इतिहास कर्मठता की गौरव गाथा—35 | 109. दुराचरण का फल—107 | 198. गुरु से किया गया छल सभी छलों से भयावह—165 |
21. चाटुकारिता एक बाधा के रूप में—35 | 110. विश्वरथ का राजपाट त्याग—107 | 199. खुद को चोटिल कर संत नामदेव ने दिया संदेश—166 |
22. अविश्वास पतन का कारण—36 | 111. लक्ष्मी का आगमन—108 | 200. जब इंद्र की तुलना में जुआरी श्रेष्ठ सिद्ध हुआ—167 |
23. नरक को पसंद किया—37 | 112. देशभक्ति—108 | 201. जनसेवा के लिए महात्मा विद्रुध ने छोड़ा स्वर्ग—168 |
24. त्याग को प्रदर्शित न करें—38 | 113. स्वच्छ मन—108 | 202. युवक ने साहित्यकार से बेटी का हाथ माँग लिया—169 |
25. संत टालस्टॉय की सरलता—39 | 114. अंतिम परीक्षा—109 | 203. जब क्रोधी आदमी ने बुद्ध के मुँह पर थूक दिया—170 |
26. अभिशाप नहीं, वरदान—39 | 115. सबसे दुर्लभ क्या—110 | 204. हजरत मोहम्मद ने दिखाया वृद्धा को सही रास्ता—171 |
27. राजा सबसे बड़ा भिखारी—40 | 116. सुभद्रा की प्रतिभा का विकास—110 | 205. मानवता प्रेमियों की होती है अग्नि-परीक्षा—172 |
28. प्रेम सर्वोपरि—41 | 117. उदारता—111 | 206. भगवान् महावीर—173 |
29. तुच्छ मूल्य के लिए अमूल्यों की बलि मत चढ़ाओ—42 | 118. सादगी—111 | 207. शिष्य आनंद के जवाब से प्रसन्न हुए गौतम बुद्ध—174 |
30. पेंशन का आधार—43 | 119. बुद्धि की सुंदरता शरीर की सुंदरता पर निर्भर नहीं—112 | 208. वैज्ञानिक रमन ने ज्ञान के बदले चरित्र को चुना—174 |
31. गरीबी ने बनाया शाकाहारी—44 | 120. जाति का ढोल—112 | 209. तप करनेवाले से ज्यादा श्रेष्ठ था वह चांडाल—175 |
32. लक्ष्मण और आँसू—44 | 121. खुशी के आँसू—114 | 210. जब रामकृष्ण परमहंस ने दी अपने गुरु को शिक्षा—176 |
33. शिरडी के साईं बाबा—45 | 122. मीठी चीज—115 | 211. नेहरू ने दी व्यर्थ आडंबर से बचने की सलाह—177 |
34. शिक्षा का प्रकाश—46 | 123. इच्छित वस्तु—115 | 212. मनुष्य का सिर लेने को कोई तैयार नहीं हुआ—178 |
35. मोह से मुक्ति—47 | 124. जन-विश्वास —115 | 213. विनम्रता से व्यक्तित्व में निखार—179 |
36. महानता का मापदंड—47 | 125. हस्ताक्षरों की कीमत—116 | 214. विदेह नरेश पर क्रोधित हो उठे जब गांधार नरेश —180 |
37. मर्मज्ञ जीवन-जगत् के रहस्य को सहज समझ लेता है—48 | 126. राष्ट्रीय संपत्ति का महत्त्व—117 | 215. जब परमभक्त के अपराध का पश्चात्ताप राम ने किया—181 |
38. महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लें—49 | 127. खाली हाथ—118 | 216. जब महावीर ने गृहस्थ के आगे माथा टेका—181 |
39. निःस्पृह भाव से मानव की सेवा—50 | 128. तीस पुत्रों का पिता—119 | 217. मकड़ी ने राजा को दिया जीतने का सबक—182 |
40. बादशाह बड़ा भिखारी—50 | 129. कर्तव्य-पालन का प्रतिफल—119 | 218. महादजी की जान बचाने के लिए राणे ने बोला झूठ—183 |
41. कर्तव्य निष्ठा—51 | 130. माँ की प्रेरणा—120 | 219. गेटे की हाजिरजवाबी से आलोचक पानी-पानी हुआ—184 |
42. स्वामी विवेकानंद की भोजन व्यवस्था—52 | 131. दूसरों पर दया—120 | 220. 80 साल के बुजुर्ग ने चीनी सीखकर लिखी किताब—185 |
43. किनारे पर बैठकर नदी का मर्म नहीं समझा जा सकता—53 | 132. आत्मा का भोजन—120 | 221. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने की अपने नौकर की सेवा—186 |
44. गुरु के लिए सब तुच्छ—54 | 133. अमरत्व क्या है?—121 | 222. आखिरकार संत तेप्युजेन का संकल्प रंग लाया—187 |
45. सेवा कार्य की प्रधानता—55 | 134. व्यक्ति अपने अभाव से नहीं, दूसरे के प्रभाव से दुःखी है—121 | 223. जब गांधीजी भोजन के लिए लाइन में लगे—188 |
46. समस्या के हल की तलाश —55 | 135. धर्म पर अधर्म की कभी विजय नहीं हो सकती—122 | 224. विश्व विजेता सिकंदर हुआ शर्म से पानी-पानी—188 |
47. दुष्कर्म का फल अवश्य मिलता है—56 | 136. सुख और दुःख—124 | 225. सम्राट् ने फिर से जीत लिया प्रजा का मन—189 |
48. मनुष्य की नासमझी—57 | 137. उचित शैली—124 | 226. मंदबुद्धि बालक वरदराज विद्वान् बनकर उभरा—190 |
49. सही निर्णय गलत रूप से जब प्रभावित हों—58 | 138. बात हैसियत की—125 | 227. राजा ने अपने आलोचक को भेजा उपहार—191 |
50. धैर्य जीवन की सफलता का आधार—59 | 139. ईश्वर की इच्छा—127 | 228. देशकाल व परिस्थितियों में ढलने से पूरा हुआ लक्ष्य—192 |
51. भले आदमी की भलाई का महत्त्व बना रहे—59 | 140. शास्त्रीजी की सादगी—127 | 229. अहंकारी गरुड़ का घमंड आखिरकार चूर हुआ—193 |
52. जनता के साथ भेदभाव नहीं—60 | 141. स्वावलंबन—128 | 230. रूपसिंह ने तोड़ा शीशा, बदले में पाया इनाम—194 |
53. अलग-अलग इच्छा—61 | 142. भिक्षा—128 | 231. सुभाषचंद्र की प्रतिभा का लोहा मान गए परीक्षक—195 |
54. आदर्श व्यक्तित्व—62 | 143. सच्चा उपदेश—129 | 232. जब अपने ही विवाह में नहीं पहुँचे लुई पाश्चर—196 |
55. राष्ट्र के जीवन में आत्मविश्वास का महत्त्व—63 | 144. ऊँचे लक्ष्य की ओर—129 | 233. चित्रकेतु का अहम्—196 |
56. राज्य का मूल्य—63 | 145. शांतिपूर्ण जीवन—130 | 234. जब विनोबाजी ने गांधीजी का भेजा पत्र फाड़ दिया—197 |
57. युवक को प्रेरणा—64 | 146. शत्रु से भी प्यार करो—130 | 235. जब लेनिन को होटल के बैरे ने पैसे उधार दिए—198 |
58. अपरिग्रही शिष्य—65 | 147. मर्यादा—131 | 236. नेहरूजी ने कहा : मत डरो और आत्मनिर्भर बनो—199 |
59. माला देवताओं के लिए—66 | 148. कल्पनाओं का सागर—132 | 237. अद्भुत स्मरणशक्ति—200 |
60. प्रेम-सहयोग ही ईश्वर की सच्ची पूजा—67 | 149. त्याग की भावना—132 | 238. क्रोध को नम्रता से जीतना—201 |
61. प्रेम, ज्ञान, शक्ति व सौंदर्य से ही सत्य बना है—68 | 150. दान देना भी सीखें—133 | 239. रूढ़ियों एवं अंधविश्वास का विरोध—202 |
62. कविता के समक्ष हीरे का कोई महत्त्व नहीं—69 | 151. भय व संकीर्णता को छोड़ो—133 | 240. सगुण उपासना का संदेश—203 |
63. पापी से घृणा मत करो—70 | 152. अंतरात्मा को जगा दिया—134 | 241. घर की विद्वत्ता का सम्मान—204 |
64. यश की प्रतिद्वंद्विता—70 | 153. अमरता की शर्त—134 | 242. स्वाभिमान—205 |
65. परलोक से इस लोक की चिंता उचित है—71 | 154. जिंदगी की अहमियत—135 | 243. धन के प्रति अनासक्ति एवं अद्भुत स्मरण क्षमता—206 |
66. प्रजा की वस्तु का मूल्य चुकाओ—72 | 155. सत्य की खोज—135 | 244. अद्भुत साहस—207 |
67. परमात्मा को कैसे जानें—73 | 156. अंजलि भर जल—136 | 245. आत्म-प्रशंसा पतन का कारण —208 |
68. मैं अपने को न पा सका—74 | 157. दान स्वीकार नहीं—136 | 246. आडंबर भक्ति का माध्यम नहीं हो सकता—209 |
69. श्रद्धा-भावना का दोहन—74 | 158. मातृत्व—137 | 247. नम्रता का आदर्श रूप—210 |
70. मुक्ति का मार्ग—75 | 159. तनाव की दवा—138 | 248. लेख का महत्त्व होता है, लेखक का नहीं—211 |
71. राजा की सोच बदली—76 | 160. पुरुषार्थ—138 | 249. सिफारिश के विरोधी—212 |
72. अंधकार के बाद ही प्रकाश का आनंद है—76 | 161. मेधावी सुभाष—139 | 250. अच्छे कलाकार का सदैव सम्मान होता है—213 |
73. गुरु के प्रति असीम भक्ति—77 | 162. ईश्वर कहाँ है?—139 | 251. गोपीनाथ की विद्वत्ता—214 |
74. कर्म ही सफलता का आधार—78 | 163. सच्चा साधु—140 | 252. श्रोता द्वारा वक्ता का मूल्यांकन—215 |
75. ईमानदारी का आदर्श रूप—79 | 164. त्यागमयी कमला—140 | 253. सच्चा वीर सच्चे वीर का सम्मान करना जानता है—216 |
76. मनुष्य ही परमात्मा का साक्षात् मंदिर है—80 | 165. सात हिंदुस्तानी—141 | 254. महान् आत्मा विद्वत्ता का सम्मान करना जानती है—217 |
77. संन्यासी को अहंकार व आसक्ति छोड़ने की आवश्यकता है—81 | 166. चमत्कार—142 | 255. आत्मोत्सर्ग देवत्व की सीढ़ी है—218 |
78. मध्यम मार्ग ही फलदायक होता है—82 | 167. विद्वान् ब्राह्मण ही पूजा योग्य है—142 | 256. सत्य की साधना ही सिद्धि प्राप्ति का मार्ग है—219 |
79. समस्या का हल मनुष्य करता है, विधि नहीं—83 | 168. एकता—143 | 257. लोभ के वशीभूत माँगा गया वरदान अभिशाप बन जाता है—220 |
80. जो कल्याणकारी है, वही सत्य है, बाकी असत्य—84 | 169. बुरा और अच्छा व्यक्ति—143 | 258. आराधना में बाधक—221 |
81. अनासक्त पुरुष कर्म करते हुए भी कर्म बंधन में नहीं पड़ता—85 | 170. असली हकदार—144 | 259. निर्लोभी मनुष्य का सिर सदा ऊँचा रहता है—222 |
82. गुस्सा एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है—86 | 171. अद्भुत इंजीनियर—145 | 260. पावन मंत्र का उच्चारण—223 |
83. अनाशक्ति—87 | 172. सेवाधर्म महान्—146 | 261. मानव मन की विवशता—224 |
84. परमात्मा को जानने के लिए उसके ध्यान में डूब जाना पड़ता है—88 | 173. ईमानदारी—146 | 262. माँ-बाप की महानता—225 |
85. सच्चाई को जाने—89 | 174. गुणी आलोचक के दायित्व—147 | 263. संतोष का महत्त्व—226 |
86. क्या अध्ययन करना चाहिए, यह कोई नहीं जानता—90 | 175. ममता का खिंचाव—148 | 264. आत्मज्ञान सर्वश्रेष्ठ है—228 |
87. घमंड मत कर, यह एक दिन तुझे सिर के बल गिरा देगा—91 | 176. स्वाधीनता की बलिवेदी पर—149 | 265. गतिशीलता की प्रधानता—229 |
जन्म : 19 अगस्त, 1934।
शिक्षा : एम.ए. (राजनीति विज्ञान), बी.टी.।
कर्तृत्व : समाज के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पूर्व जिला समाज-अध्यक्ष, स्थानीय समाज के पूर्व अध्यक्ष, समाज के राष्ट्रीय संरक्षक, जिला वैश्य महासम्मेलन-उपाध्यक्ष, समाज पत्रिका प्रभारी, सुंदरदास पुस्तकालय की स्थापना, स्थानीय समाज भवन में संत श्री सुंदरदास एवं बलराम दासजी की प्रतिमाओं की स्थापना, स्थानीय मंडी चौराहा पर संत श्री सुंदर दास की प्रतिमा की स्थापना, स्थानीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य।
प्रकाशन : ‘प्रकृति की गोद में’, ‘सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग’, ‘कर्म ही पूजा है’, ‘परमार्थ ही जीवन है’ प्रकाशित।
संपर्क : वार्ड नं. 16, खेरली जिला अलवर (राज.)।