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"कर्म संपूर्ण विश्व और जीवन का मूल है, अतः कर्म को उसके बृहत्तर वैश्विक और सामाजिक संदर्भ में समझने का अर्थ है- जगत् और जीवन को ही समग्रता में समझना। कर्म का स्वरूप क्या है? दुविधा की स्थिति में हम अपने कर्तव्य का निर्धारण कैसे करें ? इस संबंध में धर्म और नैतिकता की भूमिका क्या हो? आधुनिक समय में उनको किस सीमा तक व्यवहार में अपनाया जा सकता है ?
कर्मों के परिणाम बहुधा हमारी अपेक्षा से भिन्न क्यों निकलते हैं? कर्म से कर्मफल तक की यात्रा का रहस्य क्या है? मनुष्य की स्वतंत्र संकल्पशक्ति और नियति क्या है? सभी कर्मों का मूल विचारों में है, पर ये विचार आते कहाँ से हैं? इनका उद्गम स्थल हमारा मन है अथवा अनंत ब्रह्मांड ? मन की गहराइयों में स्थित जन्म-जन्मांतरों के संस्कार और विकार कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं? अपने वर्तमान और भविष्य को हम आनंददायक एवं सार्थक कैसे बना सकते हैं ? जीवन का उद्देश्य क्या हो? जीवन में अर्थवत्ता कैसे प्राप्त करें ?
यह पुस्तक ऐसे अनेक प्रश्नों से आपको परिचित करवाएगी। विशुद्ध वैज्ञानिक सिद्धांतों के आलोक में अध्यात्म और जीवन से संबंधित कई विषयों का विवेचन कर आपको कर्म, जीवन, भाग्य अथवा नियति के बारे में एक नई दृष्टि से सोचने पर विवश कर देगी।"