₹250
कर्नाटक की लोककथाएँ
क र्नाटक प्रमुख रूप से प्रचीन मैसूर प्रांत; हैदराबाद-कर्नाटक जिला; उत्तर कर्नाटक/उत्तर कन्नड़ प्रदेश तथा दक्षिण कन्नड़ जिले में बँटा हुआ है।
कर्नाटक के चारों भागों में लोककथाओं का विपुल भंडार है। इस संग्रह में इन सबका प्रतिनिधित्व है। भूताराधम से संबंधित लोककथाएँ दक्षिण कन्नड़ जिले में खूब प्राप्त होती है। दक्षिण कन्नड़ जिले की तरह उत्तर कन्नड़ जिले की भी कई लोक-जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्राप्त होती हैं। कारवार-गोकर्ण आदि की कहानियों पर कोंकण जिले का प्रभाव गहरा है। धारवाड़-हूली पर मराठी संस्कृति का भी प्रभाव है।
फिर प्राचीन मैसूर संस्थान पर महाराजा, राजघराने, भरतनाट्यम्, दशहरा, चामुंडी, पहाड़, महिषासुर, दुर्गा द्वारा राक्षस संस्कार आदि से जुड़ी लोकसंस्कृति का असर है।
विजयपुर (बीजापुर)-गुलबर्ग, जिसे हैदराबाद-कर्नाटक का क्षेत्र कहा जाता है, की लोककथाएँ भी बहुत प्रचलित हैं।
इस संकलन में इन सभी क्षेत्रों में प्रचलित लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करनेवाली कहानियाँ संकलित हैं।
बी. वै. ललितांबा
जन्म : 6 मार्च, 1943 को मैसूर में।
मातृभाषा : कन्नड़ एवं तेलुगु।
सेवा : कर्नाटक में 28 वर्षों तक विविध सरकारी महाविद्यालयों में प्राध्यापन; 14 वर्ष देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर में। सेवानिवृत्त आचार्य : देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर। कविता संकलन ‘फिर नया दिन’; तुलनात्मक साहित्य पर—कन्नड़-हिंदी अनुवाद; अनुवाद प्रयोग पर दस-एक ग्रंथ; 150 से अधिक लेख तथा अन्य सद्य-स्वतंत्र लेखन और अनुवाद; तुलनात्मक साहित्य पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका। कर्नाटक साहित्य अकादमी, बेंगलुरु से प्रकाशित ‘अनिकेतन’ का अनेक वर्षों तक संपादन; कर्नाटक लेखिका संघ से प्रकाशित मासिक ‘लेखिका’ का संपादन—3 वर्ष; 15 वर्षों से लगातार मैसूर हिंदी प्रचार परिषद् पत्रिका की परामर्शदाता; सैकड़ों राष्ट्रीय/ अंतररराष्ट्रीय संगोठियों में कई प्रकार के कार्य; केंद्रीय हिंदी निदेशालय, ऊर्जा/इसरो तथा अणुशक्ति मंत्रालय की परामर्शदाता—4 वर्ष।
प्रमुख : विश्व हिंदी सम्मान—9वें विश्व हिंदी सम्मेलन, दक्षिण अफ्रीका में; गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार—केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा; साहित्य साधना सम्मान—बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना; साहित्य सौहार्द सम्मान—उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ; कुवेंपु भाषा भारती—वार्षिक सम्मान; जीवन साधना सम्मान—चीन।