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कार्यालय शासनतंत्र के भवन के मुख्य आधार, व्यवस्था और विकास के प्रधान स्तंभ । एकतंत्र और राजतंत्र से लेकर गणतंत्र और प्रजातंत्र के शासनसूत्र का संचालन कार्यालयों और दफ्तरों के छोटे-बड़े भवनों में बैठे अधिकारियों और बाबुओं के हाथ में रहता है । वे ही इसके अभिनेता हैं और वे ही इसके सूत्रधार । वास्तविकता यह है कि देश उसी गति से आगे बढ़ता है जिस गति से देश के दफ्तर उसे चलाना चाहते हैं, उसी दिशा में बढ़ता है जिस दिशा में दफ्तरों की फाइलें उसे बढ़ाना चाहती हैं ।
कार्यालयी संस्कृति के विशद इंद्रजाल से मोहित समाज की विवशता प्राय: लेखकों और कहानीकारों की लेखनी का विषय रही है; और कथाकारों ने व्यापक फलक पर इस संस्कृति के सच्चे व यथार्थ चित्र उकेरे हैं, जिनमें नैतिक मूल्यों के हास का रूपांकन करते समय उन्होंने कार्यालयी वास्तविकता केशों को अधिक-से-अधिक गहरा करने का प्रयास किया है । इस संग्रह में ऐसे ही कुछ विशिष्ट कथाचित्र समाविष्ट हैं ।
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।