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’70 के दशक के बाद की नवउदारवादी नीतियों, वृहद् नव-पूँजीवाद और बदलते बाजारूपन ने हिंदी को कई तरह की ‘करणत्रयी’ का शिकार बना दिया। एक ओर हिंदी भूमंडलीकरण, वैश्वीकरण तथा बाजारीकरण की गिरफ्त में आई तो दूसरी तरफ सत्ता और स्वार्थ के खेल ने इसे अंग्रेजीकरण, अरबीकरण तथा फारसीकरण में जकड़ दिया। परिणाम हुआ—हिंदी में कई तरह की विकृतियाँ व विकार पैदा हो गए। इस नए डिजिटल युग में ये सारे संकट हिंदी के सामने गैर-जमानती वारंट की तरह खड़े हो गए। भूमंडलीकरण अर्थात् पश्चिमीकरण एवं औपनिवेशिक प्रभाव के चलते हिंदी में ढेरों खामियाँ पसर गईं। इसके वाक्य-विन्यास, मुहावरे, हिज्जे, अंदाज और आवाज ने हिंदी को भ्रष्ट बना दिया। कुल मिलाकर हिंदी का पारंपरिक अनुशासन टूट रहा है। मोबाइल फोन और फेसबुक आदि यांत्रिक संचार साधनों पर भेजे जाने वाले संदेशों ने हिंदी व्याकरण और वाक्य-संरचना आदि को फिलहाल छिन्न-भिन्न कर ही दिया है, कार्यालयों में भी हिंदी-प्रयोग के प्रति अन्यमनस्कता-उदासीनता देखी जा रही है।
अतः इन सब समस्याओं को दृष्टि में रखते हुए विशिष्ट भाषा और शिल्प-शैली में लिखी गई इस पुस्तक में कार्यालयों में हिंदी प्रयोग एवं राजभाषा के उपयोग को विश्वस्त, समृद्ध तथा सुगम-सरल बनाया गया है। विश्वास है, हिंदी जगत् इससे लाभान्वित होगा।
शिक्षा : हाई स्कूल से एम.ए. तक की परीक्षाओं में प्रथम श्रेणी। बी.ए. (हिंदी साहित्य, संस्कृत साहित्य तथा अंग्रेजी साहित्य के साथ गोरखपुर विश्वविद्यालय से उच्च द्वितीय श्रेणी)। विद्यार्थी जीवन में ढेरों साहित्यिक प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त।
प्रकाशन : ‘भाषा-विज्ञान का अनुशीलन’, ‘भाषा-विज्ञान का रसायन’, ‘हिंदी : कुछ नई चुनौतियाँ’, ‘उर्दू : दूसरी राजभाषा’, ‘प्रयोजनमूलक हिंदी की नई भूमिका’, ‘प्रयोजनमूलक हिंदी की संकल्पना’, ‘हिंदी भाषा और साहित्य’, ‘संत सुंदरदास’, ‘तुलसी विमर्श’, ‘एकांकी कुंज’, ‘प्रतिनिधि एकांकी’, ‘कथा भारती’, ‘हिंदी की श्रेष्ठ कहानियाँ’ आदि।
सम्मान-पुरस्कार :
डॉ. नामवर सिंह से ‘भाषा-वैज्ञानिक उदयनारायण तिवारी स्मृति सम्मान’,
डॉ. मुरली मनोहर जोशी के कर-कमलों से ‘पाणिनि पुरस्कार’।
उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ का नामित पुरस्कार ‘श्यामसुंदर दास’।
संपर्क सूत्र - डॉ. कैलाश नाथ पाण्डेय
नवकापुरा, लंका
जनपद-गाजीपुर-233001 (उ.प्र.)
मो. : 09451779235