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‘लौह पुरुष’ के नाम से विख्यात सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था।
हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटले समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निजाम द्वारा बाह्य मामले तथा रक्षा एवं संचार मामले भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निजाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अंततः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे.एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र काररवाई पूरी करने का निर्देश दिया। अंततः 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में कश्मीर और हैदराबाद के भारत में विलय की राह में आई कठिनाइयों और उन्हें दूर करने में सरदार पटेल की अदम्य इच्छाशक्ति पर प्रामाणिक ढंग से प्रकाश डाला गया है।
जन्म : 31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के बोरसद ताल्लुक के करमसद गाँव में।
शिक्षा : सन् 1897 में मैट्रिक तथा 1900 में डिस्ट्रिक्ट प्लीडर (जिला अधिवक्ता) की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। सन् 1910 में विलायत चले गए, जहाँ रोमन लॉ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
स्वतंत्रता से पहले ही सन् 1946 में पं. नेहरू की अंतरिम सरकार में गृह और सूचना एवं प्रसारण विभाग का कार्यभार सँभाला। एक उच्च कोटि के प्रशासक के रूप में ख्यात हुए।
स्वतंत्रता के बाद देश की 600 से अधिक छोटी-बड़ी रियासतों को मिलाकर भारत को एकता के सूत्र में बाँधने का महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक कार्य किया। ‘लौह पुरुष’ के उपनाम से प्रसिद्ध।
निधन : 15 दिसंबर, 1950 को।