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भारत में मुसलमानों की दशा और दिशा का यह समाजशास्त्रीय अध्ययन है, जिसमें समुदाय के भीतर के शोषक और शोषित की शिनाख्त करने की कोशिश की गई है। समुदाय के भीतर एक बहुत ही कम जनसंख्यक ए.टी.एम.समूह है, जो शेष डी.एम. समूह कारक्तपान कर रहा है। वह समूह भारत के देशी मुसलमानों पर बहुत ही सख्ती सेमजहब की चादर तानकर उनकी प्रगति के सभी स्वाभाविक रास्तों को तो अवरुद्ध करता ही है, लेकिन कल्याणकारी राज्य केअंतर्गत मिलने वाले सभी विशेष अवसरों को भी चाट रहा है। अशरफ/ए.टी.एम.बनाम अलजाफ/अरजाल/पसमांदा यानी डी.एम. के भीतरी संबंधों और संघर्ष को समझने, उसके परिणामों को समझने के लिए केस स्टडी के तौर पर कश्मीर घाटी को लिया गया है। कश्मीर में ए.टी.एम, बनाम डी.एम. के संघर्ष का शायद यह पहला समाजशास्त्रीय अध्ययन है। कश्मीर में सांकेतिक रूप से इसकी शुरुआत बशीर अहमद डाबला ने की थी । यह अध्ययन देशी मुसलमानों में अपनी जड़ें तलाश करने की प्रवृत्ति विकसित करेगा।
डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री गुरुवाणी और मध्यकालीन दशगुरु परंपरा के अध्येता हैं। आजकल दशगुरु परंपरा के संदर्भ में सप्तसिंधु और जंबूद्वीप का इतिहास खँगालने में व्यस्त हैं। वह हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति रह चुके हैं। कुछ समय के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में आंबेडकर पीठ में चेयर प्रोफेसर रहे। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र दिल्ली से भी जुड़े हुए हैं। प्रो. अग्निहोत्री ने अनेक देशों की यात्रा की। जिन दिनों ईरान में अयातुल्लाह खुमैनी ने आर्यमेहर शाह का तख्तापलट किया, उन दिनों वह ईरान में थे। शायद उनकी पुस्तक ईरानी क्रांति तथा उसके बाद हिंदी में लिखी गई अपने प्रकार की पहली किताब है।