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‘‘...हमारे कवियों की कविता से प्रकृति के विविध अवयव धीरे-धीरे गायब हो गए हैं। ऐसे समय में मिश्रजी की कविताएँ सुखद अनुभूति प्रदान करती हैं। उनके पास भाषा, शिल्प और शब्दों का अद्भुत भंडार है।’’
‘‘श्री मिश्र प्रकृति से गहराई से जुड़े हैं, वे काव्य सृजन के लिए बार-बार प्रकृति के पास जाते हैं। प्रकृति उनके साथ पूरा सहयोग भी करती है। वे लोप होती हुई संवेदनाओं के कवि हैं।’’
—प्रो. कुँवर पाल सिंह
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अनुक्रम
आभार — Pgs. 7
आत्मनिवेदन — Pgs. 9
प्रथम खंड : कस्मै देवाय हविषा विधेम
1. विनवहुँ मातु सरस्वति! — Pgs. 19
2. हे! हिरण्यगर्भा धरती माँ — Pgs. 20
3. द्यौ ऊर्जा का उत्स — Pgs. 22
4. शक्ति-रूपा अग्नि! — Pgs. 24
5. बनकर सोम छलकता है रस — Pgs. 27
6. रंग आँखों को लुभाते — Pgs. 29
7. झर रहे निर्झर सुरीले — Pgs. 31
8. कस्मै देवाय हविषा विधेम — Pgs. 33
9. नव-वर्ष — Pgs. 36
10. रस-रंग-सिक्त-सुंदर वसंत — Pgs. 37
11. फागुन रितु आई रे! — Pgs. 40
12. है वसंत जीवन का उत्सव — Pgs. 42
13. होली गुझिया की मीठी है इक तश्तरी — Pgs. 44
14. रस-उत्सव — Pgs. 45
15. क्या खूब साँवले हो! — Pgs. 47
16. मोहन है, कन्हैया है, नटवर है, श्याम है — Pgs. 48
17. रक्षासूत्र — Pgs. 49
18. जय रामचंद्र — Pgs. 51
19. चंद कंवल तुलसी पे — Pgs. 52
20. दिव्य-ज्योति के शत-शत निर्झर — Pgs. 54
21. अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी — Pgs. 56
22. गांधीजी ध्रुव-तारे से हैं — Pgs. 58
23. गर्वित है छब्बीस जनवरी — Pgs. 59
24. जय हे! भारत — Pgs. 61
25. अगर अंतर्दृष्टि सुंदर — Pgs. 64
द्वितीय खंड : मेरे गीत सहज तुम रहना
26. हुई भोर — Pgs. 69
27. कवि मन कुल की रीति न छोड़ो — Pgs. 71
28. शेष आशा-अमृत अब भी — Pgs. 73
29. लगता है ये घन बरसेंगे — Pgs. 74
30. मेरे अवसाद के क्षण — Pgs. 75
31. मेरे गीत सहज तुम रहना — Pgs. 76
32. कितना तो लड़ना पड़ता है — Pgs. 78
33. मीत मेरे, संग मेरे चल — Pgs. 80
34. साँझ हुई है — Pgs. 82
35. प्राची दिशि का दृश्य अनूठा है — Pgs. 84
36. मेरा मन केदारनाथ में — Pgs. 86
तृतीय खंड : नज़्म
37. सौ़गात — Pgs. 91
38. चाँद मुबारक — Pgs. 94
39. ऐ तिरंगे! — Pgs. 98
40. ख्वाबों की रुड़की — Pgs. 99
चतुर्थ खंड : भावानुवाद
41. रावणकृत शिवतांडवस्तोत्रम् का भावानुवाद — Pgs. 103
42. श्रीमद् वल्लभाचार्य कृत मधुराष्टक का भावानुवाद — Pgs. 107
43. श्री वाल्मीकि-विरचित गंगाष्टक का भावानुवाद — Pgs. 109
44. श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचित श्री यमुनाष्टकम् का भावानुवाद — Pgs. 113
45. श्रीमद् शंकराचार्यकृत चर्पटपञ्जरिकास्तोत्रम् का भावानुवाद — Pgs. 115
46. श्री परमहंस स्वामी ब्रह्मानंद विरचित श्री रामाष्टक
का भावानुवाद — Pgs. 118
पंचम खंड : विविधा
47. देखें कौन उठाता है यह बीड़ा? — Pgs. 123
48. सौ वर्ष तक के बच्चों के लिए मीठे जाइकू — Pgs. 136
49. प्यारे बच्चे, भूखे बच्चे — Pgs. 138
50. होरी कै धूम-धमाल भयो है — Pgs. 141
51. भोर और साँझ — Pgs. 142
अरुण मिश्र
जन्म : सन् 1952 में उ.प्र. के सिद्धार्थ नगर जनपद में।
शिक्षा : बी.एस-सी., गोरखपुर विश्वविद्यालय; बैचलर ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, रुड़की विश्वविद्यालय; मास्टर ऑफ सिविल इंजीनियरिंग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
प्रकाशित कृति : ‘अंजलि भर भाव के प्रसून’ (कविता संग्रह, 2001)
संपर्क : ‘शाकुंतलम्’, बी-4/113, विजयंत खंड, गोमती नगर, फेज-2, लखनऊ-226010.
दूरभाष : 09935232728,
ई-मेल arunk.1411@gmail.com