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कस्तूरबा का व्यक्तित्व गांधीजी को चुनौती देता प्रतीत होता है । स्वयं गांधीजी इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं- '' जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में ओए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर अनेक गुनी अधिक श्रद्धा रखते हैं । ''
तेरह वर्ष की उम्र में बा बापू के साथ विवाह-सूत्र में बँध गई थीं । गांधीजी को बा की निरक्षरता बहुत चुभती थी । धीरे- धीरे उन्होंने बा को कामचलाऊ पढ़ने- लिखने योग्य बनाया और बा भी बापू के रंग में रँगती चली गईं । बापू सिद्धांत बनाते और बा उनपर अमल करतीं ।
दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान रंगभेद की नीति के विरुद्ध बा कई बार जेल गई । भारत की आजादी की लड़ाई में उन्होंने बापू के कदम-से-कदम मिलाया ।
वटवृक्ष को आकार देनेवाला बीज प्राय: मिट्टी तले ही छिपा रहता है । गांधीजी को वटवृक्ष बनाने में कस्तुरबा का योगदान भी उसके एक बीज की तरह का रहा है ।
प्रस्तुत पुस्तक कस्तुरबा गांधी की उज्ज्वल जीवन-गाथा है, जो आनेवाली पीढ़ियों का युगों-युगों तक पथ-प्रदर्शन करती रहेगी ।
हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक महेश शर्मा का लेखन कार्य सन् 1983 में आरंभ हुआ, जब वे हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से 1989 में हिंदी में स्नातकोत्तर। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य। लिखी व संपादित दो सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाश्य। भारत की अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक विविध रचनाएँ प्रकाश्य। हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक पुरस्कार प्राप्त, प्रमुख हैंमध्य प्रदेश विधानसभा का गांधी दर्शन पुरस्कार (द्वितीय), पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलाँग (मेघालय) द्वारा डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, समग्र लेखन एवं साहित्यधर्मिता हेतु डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में ‘बुंदेलखंड युवा पुरस्कार’, समाचार व फीचर सेवा, अंतर्धारा, दिल्ली द्वारा लेखक रत्न पुरस्कार इत्यादि।
संप्रति : स्वतंत्र लेखक-पत्रकार।