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"नाटक साहित्य है और कला भी। नाटक का यह द्विआयामी चरित्र ही उसकी विशेषता है। कुछ नाटकों का साहित्य में बड़ा सम्मान होता है, किंतु रंगमंच पर उनकी प्रस्तुति सफल नहीं होती । इसी प्रकार कुछ नाटक रंगमंच पर बड़े सफल होते हैं, किंतु उनके आलेख में साहित्यगत मूल्यों का अभाव होता है।
श्रेष्ठ नाटक वे होते हैं, जो साहित्यगत मूल्यों से भरपूर हों और जिनकी प्रस्तुतियाँ रंगमंच पर भी उतनी ही सफल सिद्ध हों; जैसे शेक्सपियर के नाटक। यह नाटक के मूल्यांकन की कसौटी हैं। नाटक “कथा एक कंस की' इस कसौटी पर खरा उतरता है।
“कथा एक कंस की' नाटक देश के प्राय: सभी बड़े नगरों दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ, जयपुर, भोपाल, चंडीगढ़, भुवनेश्वर, गोरखपुर, कानपुर, देहरादून, प्रयागगाज, उदयपुर आदि की नाट्य संस्थाओं द्वारा मंचित हो चुका है। पंजाबी तथा ओडिया भाषाओं में भी इसका अनुवाद हो चुका है। तमिल, कनन्नड, तेलुगु, मलयालम और बांग्ला भाषाओं में अनुवाद प्रकाशनाधीन हैं।
“कथा एक कंस की"" नाटक दिल्ली विश्वविद्यालय सहित अनेक विश्वविद्यालयों तथा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता रहा है। साहित्य-जगत तथा कला-जगत दोनों द्वारा स्वीकृत और सम्मानित “कथा एक कंस की ' हिंदी नाटक विधा की एक कालजयी कृति है।"