₹200
एक शाम वह एक सवारी को लेकर लाजपत नगर जा रहा था। रास्ते में उसे एक दुकान दिख गई। बाहर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था—'देसी शराब का ठेका’ । उसने अपना ऑटो दुकान की ओर मोड़ दिया और बड़ी मिन्नत भरे स्वर में सवारी से बोला, 'साब, मैं अपना राशन-पानी ले लूँ...बाद को दुकान बंद हो गई तो मैं मर जाऊँगा।’
सवारी ने हँसकर कहा, 'जाओ, ले आओ।’
वह दौड़कर गया और एक बोतल ले आया। बोतल उसने कपड़े में लपेटकर अपने औजारों की डिग्गी में रख दी और ऑटो स्टार्ट करके सड़क पर ले आया।
सवारी ने पूछा, 'रोज पीते हो?’
'रोज...कम-से-कम एक अधिया।’
'क्यों पीते हो?’
'इसका क्या जवाब दूँ, बस इसकी लत पड़ गई है।’
'परिवार में कौन है?’
'बीवी है, दो बच्चे हैं।’
सवारी ने आगे कुछ नहीं पूछा।
—इसी संग्रह से
सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण करती तथा उसमें फैली कुरीतियों, कुचेष्टाओं व विसंगतियों पर प्रबल प्रहार करती मानवीय संवेदनाओं और मर्म से परिपूर्ण कहानियों का संग्रह।
जन्म : 15 अगस्त, 1930 को उ.प्र. के जिला उन्नाव में।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), पी-एच.डी. आगरा, विश्वविद्यालय, आगरा।
प्रकाशन : सोलह कहानी संग्रह, ‘यह भी नहीं’ (पंजाबी, गुजराती, मलयालम, अंग्रेजी में भी प्रकाशित), ‘अभी शेष है’ (उपन्यास), दो व्यंग्य संग्रह, ‘कुछ सोचा : कुछ समझा’ (निबंध संग्रह), ‘गुरु गोबिंद सिंह और उनकी हिंदी कविता’, ‘आदिग्रंथ में संगृहीत संत कवि’, ‘सिख विचारधारा : गुरु नानक से गुरु ग्रंथ साहिब तक’ (शोधग्रंथ), ‘गुरु गोबिंद सिंह : जीवनी और आदर्श’, ‘गुरु तेगबहादुर : जीवन और आदर्श’, ‘स्वामी विवेकानंद’ (जीवनी), ‘न इस तरफ’, ‘गुरु नानक जीवन प्रसंग’, ‘एक थी संदूकची’ (बाल सहित्य), ‘सचेतन कहानी : रचना और विचार’, ‘पंजाबी की प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘गुरु नानक और उनका काव्य, विचार कविता की भूमिका’, ‘लेखक और अभिव्यक्ति की स्वाधीनता’, ‘हिंदी उपन्यास : समकालीन परिदृश्य’, ‘साहित्य और दलित चेतना’, ‘जापान : साहित्य की झलक’, ‘आधुनिक उर्दू साहित्य, विष्णु प्रभाकर : व्यक्तित्व और साहित्य’ (संपादित), चार दशकों से ‘संचेतना’ का संपादन।
संप्रति : स्वतंत्र लेखन।