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कुछ कहना है
हमारा समाज और उसका परिवेश समय के साथ-साथ तेजी से बदलते सामाजिक मूल्यों के विघटन का शिकार होता जा रहा है। जीवन की परिस्थितियाँ नित-नए समीकरणों में कसती चली जा रही हैं, आपस में दूरियाँ दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। आज अनेक सामाजिक विकृतियों के बीच प्रायः हम सभी नाना प्रकार के तनावों से गुजर रहे हैं, जिसे नकारा नहीं जा सकता। हमें इस सत्यता से पलायन कर इससे मुँह नहीं मोड़ लेना चाहिए, चाहे इसका परिणाम कितना भी भयानक क्यों न हो। उस परिणाम के स्वरूप को समझना होगा, उस पर सोचविचार कर न केवल उसे एक दिशा देनी होगी, बल्कि एक स्वस्थ, सुदृढ़ आकार देकर विशिष्ट भी बनाना होगा।
वास्तव में विशिष्टता के लिए कोई साँचा या परिमाप नहीं होता है। उसके लिए तो हमें जीवन की समग्रता में जीने के अर्थों पर पुनर्विचार करना होगा और इस सिद्धांत का बौद्धिक व तार्किक आकलन करने पर हमें अपने अंतर्मन में शाब्दिक अंतर्द्वद्वों का बोध हो सकेगा, जिससे देशकाल, समाज तथा अपने आस-पास के परिस्थितियों की यर्थाथता को हम महसूस कर पाएँगे।
ऐसे ही भावों को निरूपित करने का विनम्र प्रयास है ये कविताएँ।
—डॉ. छन्दा बैनर्जी
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अनुक्रम
काव्यांजलि —Pgs. 13
औरत —Pgs. 15
औरत का दर्द —Pgs. 17
हर अहसास में है वो —Pgs. 19
मेरी बेटी —Pgs. 21
दर्द का अनुबंध —Pgs. 23
आकार गढ़ना चाहती थी वो —Pgs. 25
कुछ कर न सकी —Pgs. 27
नारी —Pgs. 29
नारी का सौदा —Pgs. 31
गलियारों से कोसों दूर —Pgs. 33
कविता के कैनवास पर —Pgs. 35
कविता संगीत है —Pgs. 37
कहाँ खो गई हो तुम —Pgs. 39
ज़िंदगी के गीत —Pgs. 41
बहती है ज़िंदगी —Pgs. 43
ज़िंदगी की शाम —Pgs. 45
ज़िंदगी गुमनाम है —Pgs. 47
ज़िंदगी थम सी गई है —Pgs. 49
जीवन के पल —Pgs. 51
जीवन अर्धसत्य है —Pgs. 53
तुम्हारी यादें —Pgs. 55
यादों के पलछिन —Pgs. 57
यादों के ठूँठ —Pgs. 59
अतीत की यादों में —Pgs. 61
याद आती है —Pgs. 63
कई स्मृतियाँ —Pgs. 65
समय गवाह है —Pgs. 67
कोशिश —Pgs. 69
कहाँ खो गए वो लम्हें —Pgs. 71
तारीखों के गवाह —Pgs. 73
पहचान मेरे गाँव की —Pgs. 75
ढूँढ़ता है मेरा दिल —Pgs. 77
जाने नहीं दिया मुझे —Pgs. 79
कहाँ ढूँढ़ूँ मैं —Pgs. 81
आषाढ़ की रात —Pgs. 83
अंतिम चाह —Pgs. 85
नई उजास —Pgs. 87
निरर्थक —Pgs. 89
रिश्तों के आयाम —Pgs. 91
इंतज़ार —Pgs. 93
अस्तित्व —Pgs. 95
कुछ तो रंग भरो —Pgs. 97
डर है आज —Pgs. 99
कौड़ियों के मोल —Pgs. 101
एहसास —Pgs. 103
क़र्ज़ —Pgs. 105
ज़रा आहिस्ता चल —Pgs. 107
स्पंदन —Pgs. 109
गुनगुनाने दो ज़रा —Pgs. 111
डॉ. छन्दा बैनर्जी
जन्मः 15 अगस्त शिक्षा : स्नातक व स्नातकोत्तर (पत्रकारिता एवं जनसंचार) में गोल्ड मेडलिस्ट।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से पी एच.डी.।
अनुभव : विभिन्न समाचार पत्रपत्रिकाओं में नियमित लेखों का प्रकाशन; आकाशवाणी तथा दूरदर्शन में लेखन एवं प्रसारण का अनुभव; हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, ओडिया तथा छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान।
प्रकाशित उपन्यास : My Soulmate (Austin Macauley Publishers, London).
ई-मेल : dr.banerjeechhanda15@gmail.com