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प्रमिला तनकर खड़ी हो गई । हाथ जोड़े, ' जो भीख उनसे माँगी थी वही आपसे माँगती हूँ । '
लाहड को आश्चर्य हुआ । वह भी खड़ा हो गया ।
' क्या? प्रमिला, क्या?'
प्रमिला ने तुरंत झुककर उसके घुटने पकड़ लिये । वह पैर नहीं छू पाई ।
लाहड ने थाम लिया ।
प्रमिला रो पड़ी । रोते-रोते बोली, ' मेरे पिता और भाई की रक्षा करिए । उन्हें क्षमा कर दीजिए । '
लाहड का हाथ गले के गंडे पर गया और फिसलकर नीचे आ गया । प्रमिला उसके घुटने जकड़े थी । लाहड हिल गया । ' तुमने कैसे जाना कि मेरे मन में उनके प्रति हिंसा है?' लाहड का कंठ रुद्ध हो गया था ।
' मैंने सुन लिया है । अंगद ने बतलाया । '
' ओह! उसने । उसकी नीचता पर शंका कुछ समय से मेरे मन में हो गई है । तुम पलंग पर बैठ जाओ । बात करूँगा । तुम्हें दुःखी नहीं देख सकता । ' ' नहीं, मैं वचन लिये बिना नहीं मानूँगी । '
' अच्छा, मैं वचन देता हूँ प्रमिला । अब तो छोड़ो । '
' एक और । '
- इसी उपन्यास से
देश में कभी भी आंभियों और जयचंदों की कमी नहीं रही है; पर साथ ही ऐसे पराक्रमी देशभक्तों की भी कमी नहीं रही है, जो अपनी मातृभूमि की समृद्धि के लिए, उसकी सुरक्षा के लिए प्राणपण से जीवन भर लगे रहे ।
प्रस्तुत उपन्यास में तत्कालीन कालिंजर व त्रिपुरि राज्यों की समृद्धि व स्थापत्य कला का ऐसा सजीव वर्णन है, जो भुलाए न भूले ।
मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्टि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।