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लोककथाएँ, लोकसंस्कृति की संवाहिका होती हैं, जो विरासत में नई पीढ़ी को प्राप्त होती हैं। अतीतकालीन लोकजीवन की जीवंत और मनोमुग्धकारी झाँकियाँ इनमें अंकित रहती हैं। भारतीय लोककथाओं की सुसमृद्ध परंपरा की विशिष्ट कड़ी के रूप में केरल की लोककथाओं का अहम स्थान है। ‘देवता का अपना देश’ पुकारे जानेवाला रमणीय प्रांत केरल विविध प्रकार की लोककथाओं की क्रीड़ाभूमि रही है। एक ओर वे कथाएँ केरल के ऐतिहासिक-प्रागैतिहासिक एवं सांस्कृतिक बहुविध पहलुओं को चिह्नित करती हैं तो दूसरी ओर केरलीय लोक-जीवन के मनोरम चित्र भी उकेरती हैं।
इन लोककथाओं में केरल की उत्पत्ति संबंधी कथा आती है, केरल के ओणम जैसे त्योहारों, प्रसिद्ध मंदिरों, नागतीर्थों से जुड़ी हुई कथाएँ भी सम्मिलित हैं। केरल के विशिष्ट व्यक्तियों, वीरों और वीरांगनाओं के अद्भुत, रोमांचकारी एवं साहसिक कार्यकलापों ने भी इनमें स्थान पाया है।
ये लोककथाएँ नई पीढ़ी को अपने प्रांत के पुराने व्यक्ति-विशेषों, आचार-विचारों, पर्व-त्योहारों, लोककलाओं एवं जीवन-शैलियों को अवगत कराने में सक्षम हैं।
एस. तंकमणि अम्मा
केरल में जनमी मलयालम भाषी तंकमणि अम्मा ने हिंदी में एम.ए., पी-एच.डी. की उपाधियाँ पाई हैं। केरल के विविध सरकारी महाविद्यालयों तथा केरल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 37 वर्ष तक उन्होंने अध्यापन-कार्य किया। प्रोफेसर एवं अध्यक्षा तथा डीन, केरल विश्वविद्यालय के पद से सेवानिवृत्त हुईं। केरल प्रांत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में वे सक्रिय हैं। उनके मार्गदर्शन में 25 शोध-छात्रों ने पी-एच.डी. की उपाधि तथा 95 छात्रों ने एम.फिल की उपाधियाँ प्राप्त
की हैं।
मौलिक लेखन, तुलनात्मक अध्ययन, अनुवाद आदि उनके मुख्य कार्यक्षेत्र हैं। अनेक प्रमुख ग्रंथों का कन्नड़ में अनुवाद ‘केरल ज्योति’, ‘शोध दर्पण’ जैसी पत्रिकाओं की वे संपादिका रही हैं। ‘शोध सरोवर पत्रिका’ की प्रबंध-संपादिका रहीं। टोरंटो, कनाडा से प्रकाशित पत्रिका ‘पुस्तक भारती’ के निदेशक मंडल की सदस्या हैं। ‘द्विवागीश पुरस्कार’, ‘राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार सौहार्द सम्मान’, ‘विश्व हिंदी सम्मान’ (सूरीनाम), ‘शताब्दी सम्मान’ सहित कई पुरस्कारों से अलंकृत ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’, प्रयाग की ‘साहित्य-वाचस्पति’ मानद उपाधि से विभूषित।
संपर्क : मणिमंदिरम्, आनयरा, तिरुवनंतपुरम्-695029
मो. : 9349193272