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रचना का कथानक उदारीकरण से पूर्व का है। तीव्र जीवनशैली, उपभोक्ता संस्कृति तब तक लोकजीवन से नदारद थी। सो युवाओं को मन-रंजन के लिए व्यूह रचना की दरकार पड़ती थी।
कथाभूमि मध्य हिमालय-शिवालिक के संधिस्थल पर बसे अंचल की है। लोक-संस्कृति, लोक व्यवहार व अपनेपन की झलक रचना में यत्र-तत्र दिखाई पड़ती है।
घटनाक्रम लेखक के कैशोर्य-युवावस्था के संधिकाल का है; जो कुछ भी अनुभव किया, उसका यथार्थ चित्रण हुआ है। चित्रण जीवंत है, जिससे रचना असर पैदा करती है, चमत्कृत करती है। उसी साँचे को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें ढलकर वह ऐसा बन पड़ा है। रचना उसी भावभूमि का विस्तार है।
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अनुक्रम
प्राक्कथन—7
1. चरित्र-निर्माता—11
2. कुंभ व कुम्हार : एक—17
3. कुंभ व कुम्हार : दो—22
4. कुंभ व कुम्हार : तीन—28
5. उच्च शिक्षा—33
6. क्रीड़ा संसार—39
7. नदी किनारे गाँव रे—46
8. पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान—50
9. ब्रह्ममुहूर्त—56
10. मूँछ-मर्दन—62
11. गोपालन—75
12. वृषभ-हरण—81
13. कुक्कुट-हरण—87
14. भेड़-चाल—93
15. भंग-प्रसंग—97
16. मद्य प्रसंग—103
17. काली कथा—108
18. प्रसंगवश—115
19. मिलनसार लोग : एक—121
20. मिलनसार लोग : दो—127
21. मिलनसार लोग : तीन—132
22. स्मरण—137
23. समय-सारिणी—143
24. कालाय तस्मै नमः—147
25. ऑलोपैथी—151
26. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ : एक—156
27. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ : दो—161
28. विदुषी—167
29. मनीषी—172
30. भाषा बहता नीर—177—
ललित मोहन रयाल
जन्म : बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के मध्य में, टिहरी जनपद के सुदूरवर्ती अंचल में।
जीविकोपार्जन : लोकसेवा से।
पूर्व प्रकाशित रचना : ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’।