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नंद किशोर गर्ग की राजनीतिक एवं सामाजिक यात्रा में अनेक अविस्मरणीय पड़ाव हैं। डॉक्टर साहब का संपूर्ण जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित रहा। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने कभी किसी भी परिस्थिति से समझौता नहीं किया, बल्कि बेबाकी के साथ अपनी बात को सबके समक्ष रखा। ‘राष्ट्र प्रथम' के सिद्धांत को उन्होंने अपने जीवन में गहरे से आत्मसात् कर रखा है। अचानक राजनीति से संन्यास की घोषणा के बाद उन्होंने सामाजिक सेवा को अपना ज्यादा-से-ज्यादा समय देने का फैसला किया। शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा जो कार्य किए गए, वे दिखाते हैं कि आज के युग में शिक्षा को मुनाफे का माध्यम न बनाकर उसे सहकारिता के आधार पर संचालित करने से राष्ट्र का विकास होगा। डॉ. नंद किशोर गर्ग की जीवनगाथा में बहुत सी खट्टी-मीठी बातें हैं। सहज-सरल भाषाशैली, स्पष्टवादिता, भावनाओं का प्रवाह और आम आदमी की शब्दावली उनकी आत्मकथा को पठनीय बनाती है।
सेवा, समर्पण, सहकार और सामूहिकता के प्रति समर्पित प्रेरक व्यक्तित्व की यह आत्मकथा पाठकों को समर्पण व 'राष्ट्र सर्वोपरि' का मूलमंत्र बनाने के लिए प्रेरित करेगी।
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अनुक्रम
प्राक्कथन —Pgs.7
हार्दिक आभार —Pgs.11
प्रथम खंड
1. मेरा बचपन और वो यादें —Pgs.17
2. छात्र जीवन से ही समाज-सेवा —Pgs.21
3. हाई स्कूल में फर्स्ट न आने का मलाल —Pgs.26
4. बहन ने किया मेरा सपना पूरा —Pgs.29
5. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़ाव —Pgs.33
6. नहीं भूलते दिल्ली विश्वविद्यालय के वे दिन —Pgs.36
7. घरवालों को डर था, कहीं प्रचारक न बन जाऊँ —Pgs.40
8. कारोबार की दिशा में पहला कदम —Pgs.42
9. आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह और जेलयात्रा —Pgs.45
10. कारोबार के साथ शुरू हुई सार्वजनिक सेवा —Pgs.50
11. केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का साक्षी —Pgs.54
12. पढ़े फारसी बेचे तेल ये देखो कुदरत के खेल —Pgs.57
13. दिल्ली नगर निगम से विधानसभा तक —Pgs.62
14. दिल्ली विधानसभा में राजनीतिक पृष्ठभूमि —Pgs.64
15. साहिब सिंह वर्मा के बाद भाजपा सत्ता में नहीं आई —Pgs.76
16. भाजपा सरकार को अस्थिर करने पर आमादा थी कांग्रेस —Pgs.79
17. दीपचंद बंधु ने रची थी कांग्रेस तोड़ने की साजिश —Pgs.81
18. बदल गई दिल्ली की राजनीतिक स्थिति —Pgs.83
19. सक्रिय राजनीति से हुआ मोहभंग मेरा —Pgs.87
20. मानवता की सेवा ही मेरी पूँजी —Pgs.91
द्वितीय खंड
1. माँ से मिला धार्मिक सेवाभाव वाला आचरण —Pgs.99
2. सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाता गया —Pgs.104
3. अस्सी के दशक की यादें —Pgs.109
4. कारोबार और व्यापार की बातें —Pgs.115
5. राजनीतिक संबंधों की मर्यादा रखी —Pgs.130
6. जब राजनीति से ऊपर उठकर फैसले लिये —Pgs.132
7. अटलजी होंगे यू.पी. के मुख्यमंत्री —Pgs.137
8. पार्टी के आयोजनों में करता रहा शिरकत —Pgs.145
9. संघ के साथ कायम रहा गहरा रिश्ता —Pgs.148
10. मेरा पहला विधानसभा चुनाव : लोगों के दाँव-पेच और षड्यंत्र —Pgs.153
11. डॉ. हर्षवर्धन को सार्वजनिक जीवन में लाने का श्रेय —Pgs.157
12. आपातकाल की यादें —Pgs.166
13. नेताओं की संपत्तियों की घोषणा करने का सबसे पहला विचार —Pgs.169
14. अटलजी एवं अन्य राजनेताओं के साथ मेरी यादें —Pgs.174
15. दिल्ली में भाजपा के काम का कांग्रेस ने ले लिया श्रेय —Pgs.179
16. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी न्यास से जुड़ने का सौभाग्य —Pgs.181
डॉ. नंद किशोर गर्ग राजनेता, समाजसेवी, शिक्षाविद्, विचारक और प्रखर राष्ट्रवादी डॉ. नंद किशोर गर्ग को इन्हीं संबोधनों से पहचाना जाता है। समाजसेवा के क्षेत्र में उन्होंने अनेक बड़े कार्य किए हैं, खासतौर पर भारत के प्राचीन तीर्थ-स्थलों के पुनर्निर्माण के लिए उनकी पहल सराहनीय रही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक से उनका सार्वजनिक जीवन शुरू हुआ, जो दिल्ली सरकार में संसदीय सचिव के पद तक लगातार चलता रहा। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. नंदकिशोर गर्ग ने गरीब बच्चों की शिक्षा से लेकर उनके बहुमुखी विकास के लिए कई विद्यालयों की स्थापना की और उन्हें राष्ट्र को समर्पित करने का काम किया। चार दशक के राजनीतिक जीवन में वे दिल्ली के विकास के लिए सदा क्रियाशील रहे। वर्तमान में डॉ. गर्ग महाराजा अग्रसेन विश्वविद्यालय (बद्दी, हिमाचल प्रदेश) के कुलाधिपति के पद पर विराजमान हैं।