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सुनील ‘सनी’ गावस्कर दुनिया भर में करोड़ों लोगों के आदर्श हैं। उनके बल्ले के जादू ने कई रिकॉर्ड बनाए और उतने ही लोगों के दिल जीते। उनके कटु आलोचकों को भी मानना पड़ा कि वह वाकई ‘लिटिल मास्टर’ हैं। बाद में गावस्कर क्रिकेटर से एक विशेषज्ञ कमेंटेटर और स्तंभकार बन गए। उनके स्तंभों की पूरे मीडिया-जगत् में धूम है। उनके लेख केवल खेल तक सीमित नहीं रहते बल्कि अन्य खेलों और उनके महान् खिलाड़ियों पर भी वे अपनी विचारपूर्ण टिप्पणी करते हैं। उनके विषय केवल क्रिकेट का मैदान नहीं बल्कि खिलाड़ियों का अनुशासन, उनकी टीम-भावना तथा उनका प्रदर्शन आदि रहता है। ये लेख उनके व्यक्तित्व का आईना हैं और पूरी तरह बेबाक हैं। वह गोल-मोल बात नहीं करते और जैसा है वैसा ही कहते हैं। वह अतीत की महान् हस्तियों, जिनमें स्व. एम.एल. जयसिम्हा और डॉन ब्रैडमैन भी शामिल हैं, के बारे में चर्चा करते हैं। साथ ही अपने समकालीन खिलाड़ियों, चाहे भारतीय या अन्य देशों के हों, पर भी उन्होंने मन से लिखा है। वह बताते हैं कि क्रिकेट-जगत् में क्या कमियाँ हैं। वह यह भी दावा करते हैं कि भारतीय क्रिकेट टीम की ताकत का लोहा सबको मानना ही पड़ेगा।
खेलों के रोचक संसार की रोचक बातें वर्णित करती अत्यंत उपयोगी व जानकारी परक पुस्तक है।
जन्म : 10 जुलाई, 1949 को मुंबई में। शिक्षा : सेंट जेवियर हाई स्कूल और सेंट जेवियर कॉलेज में। मात्र बारह साल की उम्र में 1961 में अंतर-विद्यालय टूर्नामेंट में अपना कमाल दिखाया। कॉलेज इलेवन, ईरानी कप और रणजी ट्रॉफी में उनके शानदार खेल ने टेस्ट क्रिकेट में उनका चयन प्रशस्त किया। 1971 में वेस्टइंडीज के दौरे में अपने प्रथम टेस्ट क्रिकेट कैरियर में चार मैचों में 154.8 रनों के औसत से 774 रन बनाए। उन्होंने कुल 34 टेस्ट शतक बनाए और डॉन ब्रैडमैन के 29 शतकों के रिकॉर्ड को तोड़ा। उन्होंने 125 टेस्ट मैच खेले और कुल 10,122 रन बनाए। 108 एकदिवसीय मैच भी खेले और इनमें 3,092 रन बनाए। 47 टेस्ट मैचों में भारतीय टीम की कप्तानी भी की। उन्हें 1975 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, 1980 में ‘पद्मभूषण’ और 1999 में ‘महाराष्ट्र भूषण’ पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। सुनील गावस्कर शारजाह, बी.बी.सी., चैनल 9 नेटवर्क, ई.एस.पी.एन., स्टार स्पोर्ट्स और नियो स्पोर्ट्स के लिए टी.वी. कमेंट्री करते हैं। वह आई.सी.सी. क्रिकेट कमेटी, राष्ट्रीय क्रिकेट कमेटी और बी.सी.सी.आई. टेक्निकल कमेटी के चेयरमैन समेत कई अहम पदों पर आसीन रहे। उन्हें चार किताबें—‘सनी डेज’ (1976), ‘आईडल्स’ (1983), ‘रन्स एन रुइन्स (1984) और ‘वन डे वंडर्स’ (1985) लिखने का भी श्रेय प्राप्त है।