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संसार में बुद्धिमान कम और मूर्ख अधिक क्यों हैं?' किसी ने पूछा तो जवाब मिला-' संख्या ( गणित) की अनभिज्ञता के कारण । ' यदि गणित न हो तो संसार का समस्त विकास तत्क्षण चौपट हो जाएगा । हमारे जीवन को कोई पाठ्य- विषय प्रभावित करे या न करे, गणित के बिना-पढ़े -लिखे और अनपढ़-किसी का भी कार्य चलना असंभव है । गणित के अभाव में भाषा गूँगी हो जाएगी तथा हमें अँगुलियों के इशारों से काम चलाना पड़ेगा । अत : जीवन स्वयं में जितना आवश्यक है, उतना ही गणित जीवन के लिए आवश्यक है । फिर क्या कारण है कि अधिकांश विद्यार्थी गणित के नाम से ही घबराने लगते हैं-वे चाहे प्राइमरी कक्षा के हों, विद्यालय, विश्वविद्यालय के हों या कि प्रतियोगी परीक्षाओं के परीक्षार्थी? कारण है, विषय का नीरस होना ।
प्रस्तुत पुस्तक में गणित के ऐसे सरल- सुबोध सूत्र (फार्मूला) विद्वान् लेखकों ने प्रस्तुत किए हैं कि चुटकी बजाते ही, बड़ी- बड़ी संख्याओं के जोड़, घटाना, गुणा, भाग, वर्गमूल, घनमूल आदि- आदि निकाले जा सकते हैं । पुस्तक का नाम ' खेल-खेल में गणित ' सार्थक तो है ही, इन सूत्रों को याद करने मात्र से नीरस विषय भी सरस हो जाता है । यह पुस्तक विद्यार्थियों तथा प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगी ।
हाथ कंगन को आरसी क्या, पड़े - लिखे को फारसी क्या? पुस्तक आपके हाथ में है, आजमाकर देख लीजिए ।
शिक्षा : एम.एस-सी., एम. एड., डिप्लोमा इन कॉमनवेल्थ एजूकेशन एडमिनिस्ट्रेशन ( बर्मिंघम विश्वविद्यालय) ।
शिक्षण अनुभव : शिक्षक-प्रशिक्षक के रूप में गणित, विज्ञान, जीव विज्ञान शिक्षण का चौबीस वर्ष का अनुभव ।
प्रकाशित पुस्तकें : ' विज्ञान प्रशिक्षण ', ' गणित प्रशिक्षण ', ' खेल -खेल में गणित ', ' जीव विज्ञान ', ' शैक्षिक तकनीकी ', ' शिक्षण अधिगम के आधारभूत तत्व', ' सूक्ष्म शिक्षण ', ' गणित के रोचक खेल ' तथा एन. सी. सी. प्रशिक्षण से संबद्ध अनेक पुस्तकें प्रकाशित ।