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स्वतंत्रता के पहले से हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में खेल गतिविधियों को स्थान मिलने लगा था, किंतु इस विषय को महत्त्व मिला आजादी के बाद के दशकों में, जब समाचार-पत्रों में खेलों का पन्ना अनिवार्य हो गया। एक तरफ खेलकूद कैरियर के रूप में अपनाए जाने लगे, वहीं खेल पत्रकारिता एक विशेष विधा के रूप में स्थापित हो गई। चाहे मुद्रित समाचार माध्यम हो अथवा दृश्य-श्रव्य माध्यम, खेल पत्रकारिता को स्वतंत्र अस्तित्व और महत्त्व मिला। फिल्मी दुनिया के समान खेल-जगत् के सितारे भी चमकने लगे। पाठकों की गहन अभिरुचि के चलते खेल समाचारों की प्रस्तुति और विश्लेषण में परिपक्वता आई। खेल पत्रकारिता के विकास और विस्तार ने दक्ष पत्रकारों की माँग भी बढ़ाई। प्रस्तुत पुस्तक में भारत की हिंदी खेलड़पत्रकारिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उसकी विकास-यात्रा, खेलों की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य की संभावनाओं का विस्तार से विवेचन किया गया है। विश्वास है, यह पुस्तक खेल-प्रेमियों एवं खेल-पत्रकारों के साथ-साथ इस विषय के विद्यार्थियों का भरपूर ज्ञानवर्द्धन करेगी।
शिक्षा : गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक।
अध्यापन : हिन्दू विश्वविद्यालय काशी विद्यापीठ वाराणसी में अतिथि व्याख्याता।
सम्मान : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की फैलोशिप।
लेखन : 'आज', 'दैनिक जागरण', 'अमर उजाला' एवं 'लोकमत' समाचार पत्रों में खेल गतिविधियों की कवरेज।