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Khetri Naresh Aur Viveakanand

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Author Jhabarmall Sharma
Features
  • ISBN : 9788177211801
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Jhabarmall Sharma
  • 9788177211801
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 120
  • Hard Cover
  • 264 Grams

Description

बाप्पा रावल, राणा प्रताप और मीराबाई की अस्थि-मिश्रित, पुनीत बालुकामयी राजपूताने की मरुभूमि में कुछ ऐसी ज्योतिर्मयी शक्‍ति है कि समय-समय पर उस रक्‍त-रंजित स्थल में वह शक्‍ति लोगों के हितार्थ मानव रूप धारण किया करती है। स्वर्गीय राजा अजीतसिंह भी उस शक्‍ति के एक प्रतिबिंब थे। स्वामी विवेकानंद और राजा अजीतसिंह उस सृजनहार शक्‍ति के दो निकटतम रूप थे, जो इस संसार में उस शक्‍ति की प्रेरणा से आए थे और अपना कर्तव्य-पालन करके उसी में लीन हो गए।
स्वामीजी ने अपने आध्यात्मिक बल से अमेरिका में वेदांत-पताका फहराकर भारतवर्ष और हिंदू जाति का गौरव बढ़ाया था। वस्तुतः स्वामीजी तरुण भारत के स्फूर्ति-स्रोत थे। अमेरिका में जाकर उन्होंने भारत के लिए जितने आंदोलन किए उतने कदाचित् किसी ने आज तक नहीं किए। इस आंदोलन में खेतड़ी-नरेश राजा अजीतसिंहजी का बड़ा योगदान था। स्वयं स्वामीजी की उक्‍ति है—“भारतवर्ष की उन्नति के लिए जो थोड़ा-बहुत मैंने किया है, वह खेतड़ी-नरेश के न मिलने से संभव न हो पाता।”
प्रस्तुत पुस्तक में स्वामी विवेकानंदजी द्वारा किए गए देश-हित के कार्यों में खेतड़ी-नरेश भी किस रूप में सहायक बने, उसका विस्तृत वर्णन है। समाज-कार्यों के लिए प्रोत्साहित करनेवाली एक अद‍्भुत कृति।

The Author

Jhabarmall Sharma

जन्म : 23 जनवरी, 1888 को जसरापुर, राजस्थान में।
पद‍्मभूषण से अलंकृत पं. झाबरमल्ल शर्मा उन मनीषियों में थे, जिनका हिंदी पत्रकारिता एवं साहित्य चिर ऋणी रहेगा।
कृतित्व : सन् 1905 में पत्रकारिता में प्रवेश किया और छह दशकों से अधिक तक सक्रिय रहे। ‘ज्ञानोदय’ (कोलकाता), ‘कलकत्ता समाचार-पत्र’ (कोलकाता), ‘भारत’ (मुंबई), ‘मारवड़ी’ (नागपुर), ‘हिंदू संसार’ सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। वे ऐसे शीर्ष मनीषी पत्रकार थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश, समाज तथा हिंदी साहित्य को समर्पित कर दिया।
दिवंगत पत्रकारों तथा साहित्यकारों की कीर्ति-रक्षा के अनुष्‍ठान में जीवन के चार-पाँच अत्यंत सृजनशील दशक अर्पित कर दिए।
बालमुकुंद गुप्‍त स्मारक ग्रंथ, माधव मिश्र निबंध माला, बालमुकुंद गुप्‍त निबंधावली तथा पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी गरिमा ग्रंथ सहित अनेक महत्त्वपूर्ण स्मृति ग्रंथों का प्रकाशन-संपादन किया। हिंदी के अध्येताओं के लिए 6,000 पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं का संग्रह धरोहर के रूप में अर्पित किया। 20 मार्च, 1982 को तत्कालीन राष्‍ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने उन्हें ‘पद‍्भूषण’ से अलंकृत किया।
कीर्तिशेष : 4 जनवरी, 1983

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