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विदेश में लंबे समय से रह रही युवती जब स्त्री के रूप में माता-पिता के घर लौटती है तो पुराने नक्श खोजती है, लेकिन अब तो उसके लिए वह खिड़की भी नहीं खुलती जिसके इंद्रधनुषी पारदर्शी शीशे कभी उसके अपने थे। हमारे सांप्रदायिक संस्कार शिक्षा और सभ्यता पर अकसर ही भारी पड़ते हैं। भाषा के महीन रेशों से बुनी जानेवाली कहानी के लिए लेखिका को मेरा साधुवाद।
—मैत्रेयी पुष्पा
शीला राय शर्मा की कहानियों का पर्यावरण सामाजिक होकर भी अधिकतर पारिवारिक है। कहानियाँ ‘सौतेली माँ’ और ‘चिल्लर बहू’ दो भिन्न वातावरण से जनमती हैं लेकिन दोनों के जीवन-मूल्य जैसे विवाह संस्था और धर्म के आधार पर संचालित हैं। इस जंजीर की कड़ी ही कहानी ‘खिड़की’ है। इसमें मनोविज्ञान की भीतरी तहों का कार्य-व्यापार है। सूक्ष्म मनोभावों का अंकन यहाँ गौरतलब है। कहन की ऐसी विशेषता भी द्रष्टव्य है जो अन्य कथा-कथन से अप्रभावित है। यही पाठ में विश्वसनीयता पैदा करता है। यह कहानीकार का अपना संवेदना, कथ्य और कहन का संसार है। यह निजता का ऐसा हस्ताक्षर है जो मौलिक है।
—लीलाधर मंडलोई
लेखिका का जन्म भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ था। पढ़ाई-लिखाई पहले जमशेदपुर और फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पूरी हुई, जहाँ से उन्होंने राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ली। घर-गृहस्थी दक्षतापूर्वक सँभालने के साथ-साथ अध्यापन द्वारा भावी पीढ़ी के निर्माण कार्य में सदा जुटी रहीं। राजनीति शास्त्र एवं इतिहास का पठन-पाठन करते हुए भी साहित्य में रुचि हमेशा बनी रही। छुटपुट कहानियाँ और कविताएँ लिखती रहीं, जो कुछ पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहीं। अवकाश प्राप्ति के बाद, संप्रति साहित्य सृजन के साथ-साथ अध्यापन कार्य में तन्मयता से जुड़ी हुई हैं।
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