शेखर की ये कहानियाँ मात्र साहित्य की परंपरा की चौंकानेवाली कहानियाँ नहीं, बल्कि सदियों से चले आ रहे अत्याचार से आगाह करने और विषमता से लड़नेवाली कहानियाँ हैं। यह साहित्य की परंपरा की वे कहानियाँ नहीं, जो घटिया संपादकों और शिविरबद्ध आलोचकों की कृपादृष्टि की मोहताज हों, ये कहानियाँ प्रताडि़त मनुष्य की भयावह स्थितियों की कहानियाँ हैं, जो उस दलित मनुष्य के आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि उसके समग्र अस्तित्व के प्रश्नों को उठातीं और उनका उत्तर माँगती भी हैं और आगे बढ़कर उनका उत्तर देती भी हैं।
इसीलिए इन कहानियों में तथाकथित साहित्यिक रचनात्मकता से अलग एक नए अर्थपूर्ण और मूल्यपूर्ण रूप से अपने समय को देखने की अभीप्सा है और यही इन कहानियों की मानवीय मूल्यवत्ता है। और शेखर की कहानियों की यह भी विशेषता है, जो रिपोर्ताज को भी अपनी सहज मानवीय लगन के सहारे एक कथात्मक दस्तावेज में तब्दील कर देती हैं और विधागत कहानियों को ज्यादा बड़े मानवीय सवालों और उनके अर्थों से जोड़ देती हैं।
—कमलेश्वर
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अनुक्रम
शेखर की कहानियाँ—5
1. दूध का कटोरा—9
2. मरने के पूर्व—23
3. सूर्यमुखी—28
4. घाव—34
5. प्रश्न और प्रश्न—40
6. रणचंडी—44
7. काल-चक्र—52
8. निशाना—58
9. करवट—68
10. फैसला—77
11. रात काफी संगीन हो आई है!—84
12. रंग—100
13. संबंध—106
14. खूँटे से बँधा आदमी—112
15. भँवर के बीच—121
16. पहाड़ जैसे दिन—128
17. कायांतरण—142
18. अतरिया—158
19. जिंदा लोगों का किस्सा—173
20. अघनी—186
21. शगुन—192
जन्म : जुलाई 1952
पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन तथा खोजी पत्रकारिता।
कहानियाँ, वृत्तचित्र आदि प्रकाशित।
प्रगतिशील लेखक-संघ और समांतर कथा-आंदोलन में सक्रिय रहे। तीसरी धारा के साहित्य-आंदोलन में अग्रणी भूमिका।
‘दृष्टि’ एवं ‘नई संस्कृति’ के संपादक-मंडल में।
संप्रति : ‘कतार’ के एक संपादक।
संपर्क : ग्राम जयमंगला, पो. सिरारी, जिला मुंगेर, बिहार।