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"मैंने महाभारत कितनी ही बार पढ़ी थी और लगता था कि द्रौपदी के नज़रिए से भी कोई बात कही जानी चाहिए, इसी एक ख़याल को कई सालों तक मैंने एक सशक्त विचार के रूप में पाला-पोसा और वो 'व्यथा कहे पांचाली' की शक्ल में आप लोगों तक पहुँचा और फिर शबरी के दृष्टिकोण से 'मैं शबरी हूँ राम की' को भी लगभग दो साल लगे आप सभी तक पहुँचने में। इन दोनों महाकाव्यों की यात्रा में हमेशा कुछ मिसरे ऐसे होते जाते थे जिन्हें मैं इन महाकाव्य में शामिल नहीं कर सकती थी, सो उन्हें कहीं अलग लिखती गई। कुछ साल पहले जब मैंने उन सभी मिसरों को इकट्ठा किया तो देखा, वो ग़ज़ल की शक्ल में मेरे सामने मौजूद हैं।
जब मैंने ग़ज़ल के दरवाजे पर दस्तक दी तो न सिर्फ ग़ज़ल ने दरवाजा खोल बल्कि बाँहें फैलाकर मुझे अपने आगोश में भी भर लिया। मैं ये बात पूरी ईमानदारी से कह सकती हूँ कि मेरी तन्हाई, मेरे अंदर के ख़ालीपन को ग़ज़ल ने न सिर्फ जुबान दी, बल्कि एक हद तक उसे दूर भी किया। मेरे ये ख़याल अब 'ख़ुशबू तेरे ख़याल की' पुस्तक रूप में आपके सामने है। उम्मीद करती हूँ, पूर्व पुस्तकों की भाँति सुधी पाठकों का इसे भी भरपूर प्यार और सराहना मिलेगी।"
उर्वशी अग्रवाल 'उर्वी'
बाल्यकाल से ही कविताएँ लिखने में विशेष रुचि। समय के साथ-साथ ग़ज़लें लिखने का भी अनुभव। महिला विषयों, विशेषकर उनकी विभिन्न भावनाओं को कविताओं, ग़ज़लों, दोहों और चौपाइयों के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं। हिंदी के अतिरिक्त सरैकी भाषा में भी काव्य सृजन। आकाशवाणी द्वारा आयोजित हिंदी व सरैकी के कई काव्य प्रसारणों व कविता पाठ में सम्मलित हुई हैं। अनेक टी.वी. चैनलों के कार्यक्रमों में कविताएँ व ग़ज़लें प्रस्तुत की हैं। अब तक लगभग एक हज़ार हिंदी कविताओं व पाँच सौ ग़ज़लों का सृजन। पाँच कविता व ग़ज़ल-संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होने वाले हैं, जिनमें प्रमुख हैं खण्डकाव्य ‘व्यथा कहे पंचाली’ व दोहा संग्रह ‘मैं शबरी हूँ राम की’। दिल्ली व उसके आप-पास होने वाले कवि सम्मेलनों एवं मुशायरों में सक्रिय भागीदारी।
काव्य मंच संचालन में सिद्धहस्त एवं कई सफल कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों का संचालन कर चुकी हैं।
संप्रति:
वर्तमान में सुविख्यात हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ की उप-संपादिका हैं।